अक्सर अखबारों में 
ऐसी खबरें पढने को मिल जाती हैं की  फलां फलां जगह पे बेटों ने बाप को पीट दिया या मार डाला
 .......सो लोग इसे , कलयुग है ......कह के पल्ला झाड लेते हैं 
......सो अब खबर आयी है की वहाँ दूर लेह लद्दाख में फ़ौज के जवानों ने अपनी पलटन  
के अफसरों को दौड़ा दौड़ा के ......खोज खोज  के  पीटा. आज सेना के एक 
प्रवक्ता का बयान आया है की घबराने की कोई विशेष बात 
नहीं है .....कोई सैन्य विद्रोह नहीं हुआ है ....बस यूँ ही थोड़ी तकरार हुई 
है . मैंने बीसियों साल फ़ौज को बड़े नज़दीक से देखा है ..........बहुत कुछ 
महसूस किया है ....पढ़ा है , लिखा भी है . अब सेना की लीडरशिप को ये मामूली 
सी बात लग सकती है पर ज़रा सोच के देखिये ........मैंने जान बूझ के ये 
anology  दी है ...... बाप को पीट  कर बेटों को कैसा महसूस होता होगा 
....या फिर बच्चों से पिट के बाप को क्या फील होता होगा .......क्या उनमे 
से किसी   को डूब मरने का ख़याल आता होगा ........यकीन मानिए मुझे इस घटना 
से बहुत ज्यादा शर्मिंदगी हुई है ........फिर मैंने शर्माते शर्माते इस 
घटना की  ज्यादा जानकारी जुटाई तो मुझे ये समझ आया की वहां लेह से कोई 
120  किलोमीटर आगे  एक firing  range  पे सैन्य युद्धाभ्यास को अफसरों ने 
पारिवारिक पिकनिक में तब्दील कर दिया था और एक major  saahab  की धर्म 
पत्नी ने पतिदेव से अर्दली ( घरेलू नौकर ) की शिकायत की . सो साहब नाराज़ हो
 गए और उन्होंने उस सिपाही ....जवान ....अर्दली .....या घरेलू नौकर ( आप 
चाहे जिस नाम से बुला लें ) को पीट दिया ......फिर उसे फौजी अस्पताल भी 
नहीं जाने दिया की कही बात खुल न जाए ........इसपे बाकी के जवान भड़क गए 
.....उनकी अफसरों से तकरार होने लगे जो जल्दी ही बढ़ते बढ़ते मारपीट में 
तब्दील हो गयी और बात यहाँ तक पहुँच गयी की जब कमांडिंग ऑफीसर ......कर्नल साहब 
......आये और सुनते हैं की उन्होंने जवानों का पक्ष लिया तो अफसरों ने उन्हें भी 
मारा और ये देख के जवान और भड़क गए और फिर उन्होंने पूरी रेजिमेंट  के 
अफसरों को खोज खोज के दौड़ा दौड़ा के पीटा ......... एक दम फ़िल्मी सीन हो गया
 .......
                             अब अर्दली की बात पे मुझे अपना बचपन याद आ 
गया .......तब जब हम फौजी माहौल में पल बढ़ रहे थे ....पिता जी फ़ौज में JCO 
थे ......हमारे घर  में भी एक अर्दली आया करता था ......बात है 1975  की 
........राम स्वरुप नाम था उसका ......घर का झाड़ू पोंछा साफ़ सफाई सब करता 
था ....बड़े मनोयोग से करता था ........फर्श पे बैठ के पूरे जोर से घिस घिस
 के पोंछा लगाता था ....सब्जी भी काटता था ........कपडे भी सुखाता था 
........उसका पूरा व्यक्तित्व ही घरेलू नौकर का था ......फिर पिता जी की 
अगली पोस्टिंग में एक नया अर्दली आया ...वो एक स्मार्ट सजीला नौजवान था 
......उसका अर्दली के रूप में काम करने का वो पहला अनुभव था सो वो असहज 
रहता था पर जल्दी ही वो इस काम में रम गया ......कुछ महीने बाद  उसे किसी 
अन्य अफसर के घर लगा दिया गया .............फिर लगभग दो साल बाद एक दिन 
मुझे वो दिखा ....उसका पूरा व्यक्तित्व बदल गया था और वो  सजीला फौजी 
नौजवान एक घरेलू नौकर में तब्दील हो गया था ......फिर कुछ साल बाद एक बार 
हमारे घर एक नया अर्दली आया ........और आते ही वो पिता जी के सामने पेश हुआ
 और सम्मान पूर्वक पर पूरी दृढ़ता से उसने कहा की वो किसी भी कीमत पे 
अर्दली ( घरेलू नौकर )  की ड्यूटी नहीं करेगा   .सो बिना किसी हील हुज्जत 
के उसे बदल कर एक अन्य अनुभवी अर्दली को लगा दिया गया .......
सो अब इस ताज़ा तरीन झगडे की शुरुआत भी एक ऐसे फौजी
 जवान से हुई जिसे ज़बरदस्ती जवान से नौकर बनाया जा रहा था और उसके 
प्रतिकार  कीवजह से इतनी बड़ी घटना हो गयी .......इस घटना   से मुझे एक और फौजी अर्दली 
की कहानी  याद आती है ....सिपाही जगमाल सिंह की .......जो वहाँ कारगिल 
युद्ध में कैप्टेन विजयंत थापर का अर्दली था और उस रात 28 जून की रात 17000
  फुट पे उस बर्फीली चोटी पे सबसे पहले शहीद हुआ था  .....और फिर याद आती 
है उस फौजी अफसर की कहानी ......Capt विक्रम बत्रा की ......जो पूरे युद्ध 
में अपने जवानों से आगे आगे चला , ये कहता हुआ की तू पीछे चल ......तू बाल 
बच्चे दार है ..........जगमाल सिंह को वो गोली लगी जो विजयंत थापर के लिए 
चली थी और विक्रम बत्रा ने वो गोली खाई जो सूबेदार रघुनाथ सिंह के लिए चली 
थी ........  
सुनते हैं की मारपीट के बाद तोपचियों की उस पलटन को लेह में न्योमा से हटा के वापस नीचे भेज दिया गया है ( हथियार सब जब्त कर लिए हैं , और आबरू भी ) .........उसी सड़क पे कुछ नीचे .......वहाँ द्रास में ......संगे मर मर के कुछ पत्थरों पे उन 542 शहीदों के नाम खुदे हैं , जो सुनते हैं की उन सुनसान , उजाड़ , बीहड़ पत्थरों को , पाकिस्तानी घुसपैठियों के कब्जे से छुडाने और इज्ज़त बहाल करने के चक्कर में मर मिटे ..........और वहीं कुछ ऊपर , उस चोटी के ऊपर से , झांकती है वो पोस्ट.......... Batra top कहते हैं जिसे ......... वहाँ से साफ़ नज़र आती है वो सड़क , जिस से गुज़र के तुम्हे जाना है ..........वहाँ से ज़रा जल्दी निकल लेना ...........खाम खाह शर्मिंदगी होगी उन्हें ..........
कोई जवान अर्दली बनने को राजी नहीं है तो क्यों उन्हें घरेलू नौकर बनाकर रखा जाता है???
ReplyDeleteबहुत दिन बाद आये आप
प्रणाम स्वीकार करें
चिन्ताजनक.
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