Monday, January 21, 2013

तीन पुश्तें ......मलाई खाते खाते शहीद हो गयी

                                   एक किसान था . उसके तीन बेटे थे . किसान बड़ा समझदार था . उसने अपने बेटों से कहा कि  तुम तीनों मेरे जीते जी ही सारी  संपत्ति और खेती बाड़ी का बटवारा कर लो .कही ऐसा न हो कि  मेरे मरने के बाद तुम लोगों में विवाद हो और तुम आपस में लड़ो झगड़ो . सो तीनों ने सारी  ज़मीन जायदाद आपस में बाँट ली .पर एक समस्या आ गयी .गाय एक ही थी .उसका बटवारा कैसे हो .अब गाय कोई ज़मीन का टुकड़ा तो है नहीं कि  तीन हिस्से कर लो .सो बड़े भाई ने सुझाव दिया कि  गाय के भी जीते जी तीन हिस्से कर लेते हैं .सब लोग अपने अपने हिस्से की सेवा करेंगे और मेवा खायेंगे .अब तुम दोनों चूंकि मुझसे छोटे हो सो सबसे पहले सबसे आगे वाला हिस्सा सबसे छोटा भाई लेगा , फिर दूसरा वाला हिस्सा दूसरा भाई और बचा खुचा हिस्सा बड़े भाई का ........लो जी बड़ी आसानी से गाय का बटवारा हो गया ..........अब गाय का मुह छोटे के हिस्से में आया था सो वो उसे बड़े प्यार से खिलाता  पिलाता , उसकी सानी भूसा करता , उसके लिए हरा चारा ले कर आता .बीच वाले भाई के हिस्से में बीच की गाय थी सो वो उसे बांधता , बैठाता था , धोता पोंछता था . बेचारे , सबसे बड़े भाई के हिस्से में बची खुची गाय यानी थन और पूछ ही बची थी . सो वो उसका दूध निकालता . उसकी बीवी उसका गोबर  पानी करती थी . सब लोग अपनी अपनी ड्यूटी मेहनत  से मन लगा के कर रहे थे . सब कुछ ठीक  ठाक चल रहा था . पर धीरे धीरे, यूँ ही , कुछ लोगों के मन में असंतोष पनपने लगा , उनको लगता था कि  कहीं कुछ गड़बड़ है . छोटे ने बड़े से कहा की सारी  मेहनत  तो मैं करता हूँ , और मज़ा तो तुम लेते हो ............वाह वाह कैसा मज़ा .....हम तो मेहनत  कर कर के मरे जा रहे हैं , और तुम निर्लज्ज बे शर्म इल्जाम लगा रहे हो  ? अपने हिस्से का काम करो , काम .........यूँ पड़े पड़े खाट  तोड़ने से कुछ नहीं होगा .........मुट्ठी भर घास तो तुमसे काटी नहीं जाती .......... अब छोटा बोला कि  सेवा तो मैं करता हूँ पर दूध तो सारा  तुम्हारी बीवी ले जाती है ......इस पे बड़े की बीवी पिनक गयी ........चार मुट्ठी घास खिला  के कहता है काम करता हूँ .........यहाँ देख , सुबह शाम दूध निकालती हूँ ........फिर गोबर उठा के उपले बनाती हूँ , सुखाती हूँ . फिर उपलों पे दूध उबालती हूँ .  जमाती हूँ . उस दही को बिलोती हूँ , उसमे से माखन  निकालती हूँ , फिर उस माखन  से घी बनाती हूँ ......बचे खुचे दूध की खीर बनाती हूँ ........मेरा पूरा परिवार लगा रहता है मेरे साथ ......खीर खानी पड़ती है मेरे बच्चों को ........अरे तुम क्या जानो कितनी शहादत दी है मेरे परिवार ने इस मुई गाय के पीछे .............मेरे पति को डाक्टर ने मना  किया है घी खाने से .....फिर भी बेचारे को घी मलाई खानी पड़ती है ........... इतने सालों से , हम यहाँ काम कर कर के मरे जा रहे है .....इतनी  कुर्बानियां दी हैं मेरे परिवार ने , इस गाय के लिए .............
                                     बूढा किसान बेचारा एक कोने में बैठा टुकुर टुकुर तमाशा देख रहा था .......गाय का ये झगड़ा , और गाय का ये कारोबार यूँ ही चलता रहा ......बड़े बेटे का परिवार यूँ ही मेहनत करते  घी दूध का निस्तारण करता रहा ......डाक्टर के लाख मना करने पर भी बड़का बेटा घी मलाई खाता था ......... और एक दिन मलाई खाते खाते ही शहीद हो गया ....वहीं थाली पे ही लुढ़क गया ..........गाय की सेवा करते करते शहीद हुआ ....मरा तो भी दोनों हाथो से मलाई ही खा रहा था .........दोनों हाथ मलाई से सने थे। मुह पे भी मलाई ही  लगी थी ....विधवा बेचारी छाती पीट  रही थी ......उसके दोनों मासूम बच्चे पल्लू पकड़ के रो रहे थे .
                                      पर बेचारी विधवा और उसके दो मासूम बच्चों को तो बाप की मय्यत पे रोने का टाइम भी न मिला ...........किसी तरह फूंक फांक के घर भागे ....शाम हो चली थी .....गाय जो दुहनी थी ........यूँ रोने धोने से काम थोड़े ही चलेगा भैया .....काम तो आखिर करना ही पड़ेगा ..........काम ही काम है ....आराम हराम है ........सो बेचारी कर्तव्य निष्ठ बेवा सब गम भुला के गाय की सेवा में लग गयी अपने  दोनों मासूम बच्चों के साथ . वही दुहना ,उबालना  घी दूध , माखन मलाई ............उसके दोनों देवर साले ....आवारा कहीं के ........ किसी काम के नहीं .........गाय को ठीक से खिलाते पिलाते तक नहीं ..........
                                    किसान अब भी कोने में बैठा टुकुर टुकुर देखता रहता है ..........कभी  कभी कह देता है  अपने बच्चों से ......गाय कमजोर हो रही है बेटा .....इसकी सेवा किया करो ..........
                      गाय तो अब गौ माता ठहरी .......जितना होता है दूध दे ही रही है





























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