Monday, February 11, 2013

कुम्भ में जानवरों का जमावड़ा

                                  आज से कई दशकों बाद , जब देव दानव फेसबुक का विश्लेषण करेंगे तो इसे इतिहास की महानतम घटना के रूप में  देखा जाएगा ........बड़ा महात्म्य है फेस बुक का ......सब फायदों के बाद इसका जो सबसे बड़ा फायदा है वो ये कि  भाई लोग यहाँ गरिया के अपनी भड़ास निकाल लेते हैं .......अब जब आपकी भड़ास निकल गयी तो आपको सुकून , चैन , सुख , शान्ति instant प्राप्त हो जाता है ......मुझे पूरा विश्वास है कि  फेसबुकिये सबसे कम हिंसक प्राणी होते होंगे . उनका पारिवारिक जीवन अन्य प्राणियों से अपेक्षाकृत सुखमय होगा ....वे निश्चित रूप से अपनी बीवियों से कम पिटते होंगे .....या अपनी बीवियों को कम पीटते होंगे .....क्योंकि अपना सारा aggression तो वो फेसबुक पे निकाल देते हैं . यूँ भी हमारे जीवन में गालियों का बड़ा महत्व है ........अपने सर्वाधिक प्रिय मित्र दोस्त या सम्बन्धियों को ही हम गाली देते हैं .......हमारे यहाँ UP में तो शादियों में बाकायदा गाली गायी जाती है ......बनारस में गाली महोत्सव होता है ........पर जो गाली महोत्सव निर्बाध रूप से फेसबुक पे चल रहा है , ऐसे जैसे अखंड रामायण का पाठ चलता है  मंदिरों में .........उसकी कोई मिसाल नहीं है इतिहास में ........ सच कहूं तो  फेसबुक इस श्रृष्टि में , गरियाने का सबसे बड़ा मंच है ..........रोजाना एक नया मुद्दा मिल ही जाता है गरियाने को .......रोजाना नयी फिल्म रिलीज़ हो जाती है . और जब कोई न हो गरियाने को तो सोनिया गाँधी , राहुल बाबा , दिग्विजय सिंह , नरेन्द्र मोदी तो हैं ही .
                              अब कुम्भ को ही ले लीजिये . 36 लोग मर गए भगदड़ में . लगे हैं लोगबाग . गरिया रहे हैं ....... हिन्दुओं  पे लाठी चार्ज कर दिया ज़ालिम सरकार ने . अम्बुलेंस टाइम पे नहीं भेजी . रेलगाड़ियाँ कम चलाई . रेल ने सर चार्ज लिया . अखिलेशवा शादी में क्यों गया . मुलायमा तो है ही मुल्ला यम . हिन्दू अस्मिता का प्रश्न है . मंत्री जी ,  रेल गाडी नहीं है तो माल गाडी लगा दो .......मुसलमानों के लिए तो हवाई जहाज लगा देते हो .......यहाँ मालगाड़ी  नसीब नहीं ........  रेल मंत्री पवन बंसल  को dracula बना के पेश  किया जा रहा है , हिन्दू  मेले का अध्यक्ष मियां आज़म खान को क्यों बनाया ...... पुलिस ने भीड़ का नियंत्रण ठीक से नहीं किया ....... वगैरा वगैरा ........
                             हमारे पड़ोस में एक शराबी रहता है ......जो कमाता है छान फूंक देता है ...... बच्चे भूखों मरते हैं ....... एक दिन घर आया तो देखा , बच्चे रो रहे हैं भूख से . उसने बीवी को डांट  लगाई , बचवा सब रो क्यों रहे हैं .....भूख लगी है .....तो फिर खाना क्यों नहीं बनाया ? आटा तक तो है नहीं घर में . अरे आटा  नहीं है ? तो क्या हुआ ....pizzahut से pizza मांगा लेती ........ भाई लोग गरिया रहे हैं की भीड़ को मैनेज नहीं किया .....ज्यादा रेल क्यों नहीं चलायी ....... साली रेल न हुई pizzahut का पिज़्ज़ा हो गया .....आर्डर दो .......30 मिनट में हाज़िर .........जनाब भारत देश में जो सामान्य , रोज़मर्रा का लोड है न हमारे सिस्टम पे .....उसी  में मरा जा रहा है देश .....न सड़कों पे जगह है ...न रेल में जगह है ....न फुटपाथ पे .......इलाहबाद , बनारस के रेलवे स्टेशन और सडकें तो सामान्य दिनों में ऐसे खचा खच भरे होते हैं कि तिल रखने की जगह नहीं होती .........रेलवे एक नयी  गाडी चलाने से पहले 100 बार सोचती है ....कैसे चलायें ....पहले ही इतना लोड है ........ऊपर से आप कुम्भ में एक दिन में 3 करोड़ आदमी उतार दो इलाहबाद में .......अब उन सबके लिए रेल चलाओ  ...... फिर वो इलाहबाद के 3 स्टेशनों से ट्रेन पकड़ेंगे ........माफ़ कीजियेगा 3 करोड़ आदमी कह गया ......3 करोड़ जानवर ....आदमी तो वो होता है जिसे  थोड़ी अक्ल होती है ......चलने फिरने , उठने बैठने का सलीका होता है ........CIVIC SENSE होता है ..........भीड़ भाड़  में कैसे व्यवहार करना है ........ व्यवस्था को कैसे बना के रखना है ........ कोई मुसीबत आने पर क्या करना है ..........थूकना कहाँ है ....चाटना कैसे है .....हमने अपने देश के इन 120 करोड़ जानवरों को इंसान बनाने के लिए किया ही क्या है .........discovery channel में दिखाते हैं , wilder beasts का जब माइग्रेशन होता है तो वो सब नदी पार करते हुए भीड़ भाड़ में एक दुसरे को कुचलते हुए निकल जाते हैं ....अपने पीछे लाशों के ढेर छोड़ते ..........
                                     3 करोड़ लोगों के लिए जो भी , जैसी भी व्यवस्था कर दी जाए वो कम ही पड़ेगी . तो इन सीमित साधनों में बहुत समझदारी से ही काम चलाया जा सकता है ......... उन लोगों को संयम से ही काम लेना पडेगा .....किसी भी कीमत पे व्यवस्था बना के रखनी ही पड़ेगी ......पर हम भारतीय कहीं पर भी धैर्य .......PATIENCE  नहीं रखते हैं .......3 करोड़ impatient लोगों में हादसा होना लाजमी है ....हो गया . दूसरी बात रही कुम्भ मेले की ....और इसमें इतने ज्यादा लोगों के participation  की . मुझे main stream media से हमेशा ये शिकायत रही है की वो लोगों को educate  करने का काम नहीं कर रहा है ........ जिन दकियानूसी अंधविश्वास , अंध श्रद्धा  ढोंग ढकोसले में हम लोग उलझे हुए हैं वो समय के साथ कम होना चाहिए , परन्तु ये तमाम अंधविश्वास बढ़ रहे हैं ...ढोंग , ढकोसले और  आडम्बर पूर्ण ये आयोजन और इनका पैमाना बढ़ता जा रहा है .  देश में आज तक जितनी भी कुरीतियाँ और कुप्रथायें  रही उन सबको justify करने के लिए ठेकेदारों के पास धार्मिक आध्यात्मिक और सामाजिक कारण रहे , पर भारत में जो समाज सुधार आन्दोलन हुए उनमे कबीर से ले कर महात्मा गांधी तक ने जनजागरण कर के उस दलदल से लोगों को बाहर निकाला  ....... इसी देश में सती प्रथा थी . बाल विवाह , विधवा विवाह , छुआ छूत , स्त्री शिक्षा , कन्या भ्रूण ह्त्या , मूर्ति पूजा , नर बलि , दास प्रथा , बंधुआ मजदूर ,  बाल मजदूर .....ये तमाम चीज़ें धर्म ,आस्था और समाज से ही तो जुडी थीं . समाज सुधारकों ने popular sentiment के विपरीत जा कर ....... लोगों को educate किया .....आज MSM क्या कर रहा है ......... श्रद्धा और आस्था के नाम पे कुम्भ जैसे बेवकूफाना आयोजनों को प्रमोट कर रहा है ....और तो और sosial मीडिया भी इन बेवकूफों की चाटुकारिता में लगा है ........
                                       कुम्भ का ( और इस प्रकार के बाकी सारे ) चूतियापा बंद होना चाहिए . ये ढकोसले के अलावा कुछ नहीं .



































4 comments:

  1. Media has an agenda in deriding Hindu customs and religious beliefs.They don't do it with an aim to educate people.

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  2. I am a regular reader of you blog and appreciate your writing but this time I am slightly disagree with your point of view Ajit Singh Ji, people can not stay inside their homes if there is no space on the road. To accommodate more public more roads should be built. In the Kumbh Stampede case, there were two main events which caused the stampade, First, Change of the platform at the last moment and second laathi charge on the public. Coming to first cause (changing of Platform at the last moment) which is common practice of railways be it Allahabad or Kanpur (I myself have experienced it personally)how can people in charge do it considering the huge crowed on that day, and moreover everyone has to catch his/her train and we can not expect everyone to be that smart in the crowed to have patience, to add this our policemen started to handle the crowed with batons. Now see the situation, You are changing the platform at he last moment and when people are trying to catch it your are laathi charging on them, the result is before us... and of course not to forget the medical help, it takes 3 hours after the incident to arrive the medical help at a place like Allahabad Railway Station... did they assume their arrangements so good that there were no chances of any mishap !!!

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  4. अजीत तुम एक निरे गधे और चूतिये टाइप के स्वनाम धन्य थोथे लेखक हो यह बात तुम्हारी इसी एक मात्र पोस्ट ....अरे गलती से पोस्ट लिख गया....इसे "पॉटी" से करेक्ट किया जाए.....
    मुझे लगता है तुम्हारी माँ ने बचपन में सही धर्म-संस्कृति का ज्ञान नहीं दिया जिसका मुझे हार्दिक खेद है......और ये तुम्हारी "पॉटी" उनके लिए बहुत शर्म का विषय है.....
    तुम्हें हमारे पैसों पर हज़ करते हुए साक्षात् सूअर नहीं दिखाई दिए .....वो निरीह हिन्दू दिखाई दिए जो अपने पैसों से अपनी परम्पराओं का निर्वाह तो कर ही रहा है...साथ ही साथ सत्ता लोलुप भेड़ियों की "कर क्षुधा" भी शांत कर रहा है.....
    क्या बुरा कर दिया उन्होंने जो पैसों के बदले अगर थोड़ी संरक्षा व् व्यवस्था मांग ली....क्या तुम भी मौनमोहन के मानसपुत्र हो जो कहता है कि "देश के संसाधनों पर पहला हक़ सूअरों का है".....???????

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