Saturday, June 8, 2013

एक दिन का राजा और एक दिन की रानी

                                                 महलों का राजा मिला , रानी बेटी राज करे .......ख़ुशी ख़ुशी कर दो विदा , की रानी बेटी राज करे .अनोखी रात फिल्म का गाना है.   ये फ़िल्मी गाना देश में इतना लोकप्रिय हुआ की इसने लोक गीत का रूप ले लिया .आज भी ये ब्याह शादियों में लेडीज संगीत में गाया जाता है . गाँव में मेरे घर के सामने वाली सड़क पे काफी ट्रैफिक हो जाता है .......शादी ब्याह के दिनों में ........ भाग दौड़ लगी रहती है सारा दिन . फिर शाम को बरातें जाने  लगती हैं . अब चूंकी हिन्दुस्तान अमीर देश है ....सो बारात में आजकल सौ सौ गाडियों का काफिला जाता है . उसमे भी नए नए शिगूफे आते रहते हैं . भाई लोग एक छोटे  ट्रक में बाकायदा बड़े बड़े स्पीकर लगा के एकदम फुल वॉल्यूम पे गाना बजाते जाते हैं . पूरी शानो शौकत से जाते हैं ....आखिर क्यों न जाएँ भाई .........अरे दुल्हे राजा की बारात है ........ मेरे पिता जी बड़े दिल से गरियाते थे ......साले राजा बनते हैं .....एक दिन के राजा .......साला हर किसी को राजा बनने का शौक है ......हर कोई राजा बनना चाहता है .......शादी ब्याह में दुल्हे को dress up भी राजा की तरह ही किया जाता है ........शेरवानी , मोतियों का हार , ऊपर से मुकुट नुमा पगड़ी ........कमर में लटकी तलवार ........घोड़े पे सवार ....और ज़्यादा बड़ा राजा हुआ तो रथ पे सवार .....जिसे कई कई घोड़े खींच रहे हों .........अब लड़का अगर राजा होगा तो लडकी रानी क्यों न होगी भैया ..........सो जब महलों का राजा मिल ही गया तो रानी बेटी राज करेगी ही .......शादी पे खर्च भी खुले दिल से और  खुले हाथ से होता है .......जिस साले को ज़िन्दगी में नमक नसीब न हुआ वो भी उस दिन सलाद में नीबू खोजता है .......वो भी द्वार पूजा पे छह पीस छेना खाता है ........
                                                मैंने हिन्दुस्तान के घोर देहात में पचीस बरस तक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया है . इन पचीस बरसों में लोगों को और उनके बच्चों को बड़े नज़दीक से देखा है . ये देखा है की कैसे बच्चे दो रु की पेंसिल के लिए तरसते हैं . फटे हुए जूते  पहन के स्कूल आते हैं . साल साल  भर की  फीस बकाया हो जाती है स्कूल में .........लड़का तो फिर भी किसी तरह चालीस रु फीस वाले प्राइवेट स्कूल में भेज दिया जाता पर लडकी वही सरकारी स्कूल में मिड डे मील की खिचड़ी खाती है , लाइन में बैठ के ........ घर में माँ सारी ज़िन्दगी अपना और अपने बच्चों का पेट काट के लड़की की शादी के लिए दहेज़ इकट्ठा करती है .........फिर खोज शुरू होती है , बाज़ार में दुल्हे राजा की ........कुछ दिन के लिए साले भिखारी भी राजा बन जाते हैं ........हम तो भाई पूरी शानो शौकत से बारात ले के आएंगे ....जिसका खर्चा तुम दोगे .....वरना हमारे पास तो झांट नहीं है सुलगाने को .........लो भैया , लडकी वाले के पैसे से हम हो गए राजा .....एक दिन के ही सही .........और फिर रानी बेटी राज करने के लिए ससुराल पहुँच जाती है ........और चौथे दिन चौके चढ़ा दी जाती है ....आइये रानी साहिबा .....खानदान भर के लिए पसेरी भर आटा पोइये ....... चूल्हे पे ......गैस तो कमबख्त सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह ने हज़ार रु की कर दी है ........ और चार छह साल में रानी साहिब दो तीन अदद युवराज पैदा कर के हड्डियों का ढांचा भर रह जाती हैं .........पूरा राजमहल कुपोषण का शिकार .....
                                                  सबसे बड़ी विडंबना ये है की आम जनता एक दिन का राजा और एक दिन की रानी बनना चाहती है . और समाज के राजनैतिक सामाजिक और धार्मिक नेता भी उन्हें इसी में उलझाए रखना चाहते हैं . मीडिया , प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक उनकी इस fantasy को बाज़ार का माध्यम बन के और पुष्ट करता है .........जबकि उसे चाहिए की वो समाज को वास्तविकता के धरातल पे उतार के आइना दिखाए .....समय समय पे हमारे समाज सुधारकों ने आडम्बर पूर्ण सामाजक आयोजनों का विरोध किया है .......परन्तु बाज़ार का तंत्र इतना मज़बूत है की वह इस fantasy को इतना मजबूत कर देता है और आदमी बेचारा इस कुचक्र में फंसा परिवार की  आधारभूत ज़रूरतों में  सारी ज़िन्दगी कटौती करता है ........ शादी में एक दिन की शानो शौकत दिखाने के लिए .........देश को एक नए समाज सुधार आन्दोलन की सख्त ज़रूरत है 






6 comments:

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    1. वरना हमारे पास तो झांट नहीं है सुलगाने को .......इस एक वाक्य ने चाँद में दाग लगा दिया ...फिर भी दाग अच्छे है .....

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    2. samay badal rahaa hai ...waise ye aam bolchaal mein prayukt nireeh saa shabd hai

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  2. विडंबना... विडंबना...और विडंबना......!!!

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