Wednesday, September 18, 2013

गरीबी ???????? ढूंढते रह जाओगे

                                                   भारत भूमि में आदि काल से ही बड़े बड़े धुरंधर ऋषि मुनि हुए हैं ........कपिल , कणाद , सांख्य , चार्वाक और ना जाने कौन कौन ....सबकी अपनी अपनी फिलोसोफी रही .....और भारत भूमि तो इतनी उर्वर रही है की वो तो हमेशा ही एक से एक धुरंधर दार्शनिक पैदा करती रही है ..............अब हाल ही में देख लीजिये .......स्वामी राहुलानन्द जी सरस्वती हुए हैं .....माँ के गर्भ से ही उन्होंने गरीबी पे चिंतन शुरू कर दिया था ......... जब वो माँ के गर्भ में थे तो उन दिनों गरीब को आधी रोटी खा कर दादी अम्मा को वोट देने का आह्वाहन होता था .......ये नारा सुन के वो गर्भ में ही मचल जाते थे .....उन्होंने तभी सोच लिया था ....गर्भ काल से ही उनका सपना था की गरीबों के लिए अपने सपने तोड़ देंगे ..........उन्होंने प्रण किया की बाहर निकलते ही वो ये आधी रोटी वाला सिस्टम ख़तम करेंगे ...........तभी से पर्यास रत थे ..........जब भी कभी छुट्टियां मनाने से फुर्सत मिलती  रोटियों की गिनती पे चिंतन मनन शुरू कर देते ........स्पेन मेक्सिको और इटली में 45 साल तक तपस्या करने के बाद उन्हें ये तत्व ज्ञान हुआ की गरीब के लिए तीन चार रोटियाँ पर्याप्त रहेंगी ..............मज़े से तीन चार रोटियाँ खा कर वो ढेकरते हुए अर्थात तृप्त होकर ढकार लेते हुए पोलिंग बूथ के सामने स्थापित हो और पंजे पे बटन दबाये ..........और फिर उन्होंने अपना व्याख्यान दिया , वहाँ उदयपुर की पवित्र भूमि पे ...........वहाँ से व्याख्यान दे कर जब पुनः गुरुकुल में पधारे तो गुरुवर....स्वामी दिग्विजयानंद सरस्वती जी ने लताड़ा ......भंते ....ये क्या व्याख्यान दे कर आये हैं आप ....अगर राज पुत्र न होते , तो आपका तो मैं ....न जाने क्या क्या काट लेता ......पर छोडिये .........आर्य , कुछ देश काल पर भी विचार कीजिये ..........अन्य गुरुकुलों के ब्रह्मचारी शानदार 8 लेन राज पथों की बात कर रहे हैं .....पुष्पक विमानों की बात कर रहे हैं ......द्रुत गामी प्रकाशमान (चमचमाते ) अनेकानेक अश्वों ( हार्सपावर) से युक्त रथों की बातें कर रहे हैं ........और आप हैं की अभी तक रोटियों पे ही अटके हुए हैं ..............क्षमा करें गुरुदेव .........व्याख्यान से पूर्व मैंने भी इस विषय पर चिंतन किया था ......... मैं भी चाहता था की सभी आर्य पेट भर रोटी सब्जी खा कर ही पोलिंग बूथ पे जाएँ परन्तु आप तो जानते ही हैं की सभी सब्जियां इन दिनों 70  -80  रु किलो हो गयी हैं . और फ़ूड सिक्यूरिटी बिल में इसका प्रावधान भी नहीं ............पर फिर भी मैंने अमात्य से भी इस विषय में चर्चा की थी .....उन्होंने रोटी के साथ दाल या सब्जी दे पाने में असामर्थ्य व्यक्त किया .........इसी लिए मैंने वहाँ तीन चार रोटियाँ खा कर पोलिंग बूथ पे आने का आह्वाहन किया ................

                                                 परन्तु आर्य पुत्र , आपको ये तो सोचना चाहिए की सामान्य जन जो की श्रम जीवी हैं उनकी क्षुधा तीन चार रोटियों में शांत नहीं होती अपितु क्षुधा की अग्नि और अधिक प्रज्ज्वलित हो जाती है ............. क्षमा करें गुरुदेव .........मेरा अनुमान था की तीन चार रोटियों में तृप्ति हो जाती होगी ..........ये अनुमान आपने कैसे लगा लिया आर्य पुत्र ? गुरु देव मेरी तृप्ति तो मात्र दो रोटियों में ही हो जाती है ..............गुरुदेव अत्यंत क्रोधित हो गए .........आँखों से ज्वाला निकलने लगी ............बोले ...वो इसलिए बरखुरदार क्योंकि तुम तोड़ते हो मुफ्त की रोटियाँ ...........और बेटा तुम खाते हो डीलक्स थाली ...उसमे रोटी नहीं होती बल्कि लच्छा परांठा होता है साथ में होता है मटर पनीर , मलाई कोफ्ता ,दाल मखनी , और साथ में रायता इसके अलावा पुलाव ..............साथ में पीते हो कोल्ड ड्रिंक .......गरीब आदमी को खानी है सूखी रोटियाँ ............शांत हूजिये गुरु देव …… शांत ..............क्रोध त्याग दीजिये गुरुवर .......आर्य तुम तो इस तरह इलेक्शन हरवा दोगे ........क्षमा प्रार्थी हूँ गुरुदेव ....कोई उपाय बताइये .......आर्य तुम्हारी समस्या मैं समझता हूँ ......परन्तु कोई न कोई उपाय तो निकालना ही पडेगा ...........गुरुदेव ....यदि रोटी के साथ सब्जी या दाल का आह्वाहन न हो सके तो क्या यह घोषणा की जा सकती है ....प्याज रोटी खायेंगे .......कांग्रेस को लायेंगे ..........गुरुदेव बड़ी कुटिल हंसी हँसे , और कच्चे पे उतर आये ....... साले प्याज तुम्हारे बाप के घर से आयेगी ..........कभी मार्किट गए हो .........जानते हो क्या रेट चल रही है ........80  रु किलो चल रही है .....क्षमा कीजिये गुरुदेव क्षमा कीजिये .....गुरुदेव शांत हुए .........बोले ...आर्य पुत्र , आपको कलावती जी की पर्ण कुटी में भेज कर गरीबी का क्रेश कोर्स भी कराया था परन्तु आप वहाँ भी बिसलेरी पीते रहे ........... ऐसा कीजिये गोल मोल बात कीजिये ..........सब्जी दाल की चर्चा ही मत कीजिये .....कहिये भर पेट रोटी रोटी खायेंगे ...... कांग्रेस को लायेंगे .....सारे आप्शन खुले छोड़ दीजिये ......रोटी चाहे नमक से खाए चाहे सूखी खाए .........बस रोटी खाता रहे वोट देता रहे .............इस प्रकार गरीबी पर लम्बे समय तक (65  वर्षों से भी ज़्यादा समय तक ) चिंतन मनन चलता रहा .......युव राज को आत्म ज्ञान हुआ ......ज्ञान चक्षु खुले .........पहले पता लगा की गरीबी दरअसल एक मानसिक अवस्था है ....इसका जेब से या ठन्डे पड़े चूल्हे से या पेट में जलती आग से कोई सम्बन्ध नहीं होता ........फिर इस विषय पे जब और ज़्यादा गहराई से विचार विमर्श हुआ तो पता चला की गरीबी दरअसल बीमारी से होती है इसलिए अगर हर गरीब को तीन गोली पेरासिटामोल की और तीन गोली डिस्प्रिन की दे दें तो भारत भूमि से गरीबी दूर की जा सकती है ...........युव राज के आनंद की सीमा न रही ....जिस समस्या का हल उनके पर दादा के पर दादा , उनकी दादी , उनके बाप , न ढूंढ पाए थे उसका हल उन्होंने चुटकियों में ढूंढ लिया था ..........तीन सूखी रोटियाँ और सुबह शाम एक paracetamol .....गरीबी ???????? ढूंढते रह जाओगे




4 comments:

  1. is blogger ko uski kalam ki chapalta,kathya ki bunawat aur shilp ki samajh k liye sadhuvad..

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  2. अजित सर, आप हिंदी की दुनिया के मीडिया-क्रुक्स लगते हैं !!! भगवान् आपकी कलम को और ताकत और आपके ब्लॉग को अत्यंत शक्तिशाली बनाये.

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