Saturday, September 21, 2013

Lunch box ..........रूह को छूती प्रेम कहानी

                                                   आज लंच बॉक्स देखी .......बहुत दिनों से इंतज़ार था इस फिल्म का .........आज देख डाली .....सुलतान पुर लोधी से पचास किलोमीटर दूर जालंधर जाना पडा देखने ..........आज दिन भर में एक ही काम किया ....लंच बॉक्स देखी .........ये एक लव स्टोरी है .......एक अधेड़ आदमी जो अगले महीने रिटायर हो रहा है उसकी लव स्टोरी .........बीवी मर चुकी है ....अकेला रहता है .......सुबह उठ कर ऑफिस चला जाता है ...शाम को घर आ कर TV देखता है और सो जाता है ....दिन में बाज़ार से खाने का डब्बा मंगवाता है ......... एक दिन उसका डब्बा गलती से बदल जाता है .......और उसी दिन से उसकी ज़िन्दगी बदल जाती है .........उसे डब्बा भेज रही है एक फुल टाइम हाउस वाइफ जिसकी शादी टूट रही है ...............उसी लंच बॉक्स से शुरू होता है चिट्ठियों का आदान प्रदान और शुरू होती है लव स्टोरी ....रोजाना डब्बा जब आता है तो उसके साथ आती है उम्मीद ....उम्मीद ज़िन्दगी की .........एक नया रंग ज़िन्दगी का ..........लंच बॉक्स से निकलती है खुशबू .......ज़िन्दगी की ........वो हलकी सी मुस्कान जो दिखती है सिर्फ आँखों में ...........लंच बॉक्स इश्क की दास्ताँ है ....पर इश्क किसी व्यक्ति से नहीं ...इश्क ज़िन्दगी से ..........
                       फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है की इसे बेहद इमानदारी से बनाया गया है ....लव स्टोरी है पर न संगीत हैं न गाने हैं , न कोई रोमांटिक सिचुएशन है और न कोई इमोशनल संवाद ..........Saajan  Fernandez  अंग्रेज़ी में संवाद करते हैं .....निर्देशक ने उसे dilute करके दर्शकों की सुविधा के लिए हिंदी घुसेड़ने की कोशिश नहीं की है .....प्रेम किसी भाषा का मोहताज नहीं .....ये हकीकत तो निगाहों से बयाँ होती है ...........इरफ़ान का अभिनय रूह को सुकून देता है ..........इस फिल्म के बाद इरफ़ान देश के सर्वकालिक महान अभिनेताओं में गिने जायेंगे ..........उन्होंने इस से पहले की अपनी सारी performances को पीछे छोड़ दिया है ...........लंच बॉक्स जैसी फिल्म से अपने career  का debute करने का निर्णय किया निम्रत कौर ने ....मैं उनकी हिम्मत की दाद देता हूँ ........बेहद खूबसूरत रोल किया है उन्होंने ......हिंदी फिल्म जगत में एक सशक्त अभिनेत्री का उदय हुआ है ..........फिल्म में नवाज़ हवा के ताजे झोंके से आते हैं ......जब मैंने उन्हें GOW में देखा था तो मुझे ये लगा था की इस आदमी ने अपनी पहली ही फिल्म मी इतना ऊंचा स्तर प्राप्त कर लिया की अब शायद इतना सशक्त रोल इसे जीवन में कभी नहीं मिलेगा ...जैसे मनोज बाजपेयी को नहीं मिला सत्या के बाद ...........पर लंच बॉक्स में नवाज़ ने सिद्ध कर दिया है की छोटे से सामान्य से रोल में भी एक सशक्त अभिनेता जान फूंक देता है .........
फिल्म की एक और खासियत ये है की बेहद गंभीर विषय पे एक धीर गंभीर फिल्म में कम से कम दस बार हंसी के फव्वारे छूटते   हैं ....दर्शकों को हंसाने के लिए उल जुलूल हरकतों की ज़रुरत नहीं होती ..........कहानी जब दिल को छूती है तो मुस्कुराहट आ ही जाती है .......कहते हैं की दिल का रास्ता पेट से हो कर गुज़रता है ...........lunchbox सीधे दिल तक पहुँचती है .........
पर  बम्बइया प्रेम कहानियों के दर्शकों से मैं यही कहूंगा की अपने रिस्क पर ही फिल्म देखने जाएँ .......... पसंद न आयी तो अपन जिम्मेवार नहीं होंगे 

2 comments:

  1. मैंने फिल्म पर अपनी राय पहले ही दे दी है, उम्मीद से ज्यादा धीमी है... आज की इस लाईफ से इसको रिलेट नहीं कर पा रहा हूँ... आज इतना वक़्त ही कहाँ है किसी के पास.... कहानी हद से ज्यादा छोटी है, स्क्रीनप्ले बेहतरीन है.... खुद के लिए नहीं एक आम इंसान के नज़रिये से फिल्म देखि इसलिए ऐसा खयाल आया...
    आप एक किरदार भूल गए या फिर पहचान नहीं पाये..... पता नहीं कितनों ने इला की ऊपर वाली आंटी की आवाज़ पहचानी, मैंने पहचान ली... "भारती आचरेकर" की शक्ल देखने का इंतज़ार करता रहा.... लेकिन रितेश बत्रा ने तो कुछ और ही सोचा था.....

    और GOW नवजूद्दीन की पहली फिल्म नहीं है, कहानी में क्या गजजब दिखे हैं, और तलाश.... वैसे सरफरोश का खबरी याद है आपको ??

    फिल्म अच्छी है... लेकिन....

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  2. GOW बतौर हीरो नवाज़ की पहली फिल्म है ....यूँ छोटे मोटे रोल्स में तो वो बरसों से दिख रहे हैं ........मोटे तौर पे भारतीय समाज में प्रेम का अर्थ है दो युवाओं का प्रेम ........यहाँ तो आदमी 40 पार होते ही खुद को बूढा मान लेता है ....फिल्म में नवाज़ की पत्नी पूछती है ...सर आपकी गर्लफ्रेंड ? अधेड़ और बुज़ुर्ग लोग प्रेम नहीं करते ...उन्हें इसकी ज़रुरत नहीं ...इजाज़त भी नहीं ........फिल्म को एक हाउसवाइफ और एक अधेड़ आदमी के नज़रिए से देखिये ........

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