Sunday, August 7, 2011

सोने का शहर ....जैसलमेर

दोस्तों ....कल मैं जैसलमेर में था ......पहली बार जैसलमेर 10 साल पहले आया था ....कल फिर आया .........जब पहली बार आया था तो एक दोस्त के साथ था .....एक गाइड ने बस यूँ ही घुमा दिया था ....कल अकेला सारा दिन घूमता रहा और समूचा जैसलमेर घूमा ....वाह .....क्या बात है .......शहर क्या है बस यूँ समझ लीजे ....पत्थर पे कविता लिखी है किसी ने .......सुन्दरता के पैमाने होते हैं सबके .....जैसे कुछ लोग सिर्फ गोरे रंग को ही सुन्दरता मान बैठते हैं ....पर असली सुन्दरता तो होती है भैया नैन नक्श में .....एक लड़की होती थी किसी ज़माने में हमारे साथ ......काली थी .......सांवली नहीं ,काली थी एकदम तवे जैसी ......पर क्या ग़ज़ब की सुन्दरता दी थी भगवान् ने उसे .....क्या नैन नक्श थे .....क्या चाल ढाल थी .....क्या गाती थी ....और थी भी बेहद intelligent .........यूँ समझ लीजे ...पूरा शहर मरता था उस पे ......एक दिन अचानक खबर आयी की शादी कर ली उसने .....हम तीन चार दोस्त बैठे थे उस समय ......धक्का सा लगा हम सबको ........तो जैसलमेर कुछ यूँ ही है .....बेहद खूबसूरत ........सोने से नहाया सा ......अब सोने की सुन्दरता तो होती ही है ....पर जो नैन नक्श हैं जैसलमेर के ....वाह .....वाह ...क्या बात है ...भाषा में शब्द कम पड़ जाते हैं उसका बखान करने के लिए .........सारी दुनिया को ताज महल बहुत अच्छा लगता है...... पर बच गए आगरे वाले .....अगर जैसलमेर कहीं दिल्ली के नज़दीक होता तो आज आगरे वाले भीख मांगते .......सारा शहर पीले रंग के sand stone से बना है ......वो पत्थर जैसलमेर के इर्द गिर्द ही पाया जाता है .....शहर के बीचों बीच एक किला है बड़ा सा ......दूर से यूँ लगता है भोंडा सा ........पर उसके अन्दर जाओ तो समझ आता है उसका सौंदर्य ........उसके बड़े बड़े slabs ......बिना किसी मसाले के बस यूँ ही एक के ऊपर एक रख के वो किला बनाया गया है .........और उसमे एक महल ....कई सारे मंदिर ...और ढेरों मकान है ....किला क्या है ...पूरा शहर है जनाब .......5000 लोग रहते हैं अब भी उसमे .......और उस किले के अन्दर ...उन भवनों के ऊपर जो नक्काशी है .......वाह ....लाजवाब ....इतनी बारीक ...इतनी खूबसूरत .......हर घर की जो सामने वाली दीवार है ......उसपे पूरी नक्काशी हैं .......झरोखे कहते हैं उन्हें ......ताज महल की नक्काशी तो पानी भरती है उसके सामने .......और ऐसे हज़ारों घर हैं ....मंदिर हैं ...महल हैं...... हवेलियाँ हैं ......छतरियां हैं ...और बहुत से सार्वजनिक भवन हैं ........सब एक से एक लाजवाब.......एक और खासियत है यहाँ की वास्तु कला में ..........पत्थर को पोलिश नहीं किया गया है ..........बस यूँ ही रख दिया है .....वहां एक gate है बहुत बड़ा ...हवा पोल कहते हैं ......उसके नीचे - चबूतरे बने है ....खूब हवा लगती है वहां इसलिए लोग बैठे रहते हैं वहां ....अब 1000 साल से लोग बैठ रहे हैं उन पे सो पत्थर घिस घिस के पोलिश हो गया है ....खूब चमक गयी है ......उस पत्थर को सहला के देखा मैंने ....संगमरमर बहुत मुलायम होता है ....उसका स्पर्श बहुत soft होता है ....इसी लिए उसे संग मर्मर कहा गया है .......संग माने पत्थर और मर्मर माने मुलायम ......पर जैसलमेर का ये sand stone मुझे मकराने के संग मर्मर जितना ही मुलायम लगा .....फिर भी भवन निर्माण में इसे पोलिश कर के नहीं लगाया गया है ....फिर भी उन भवनों में गज़ब का सौंदर्य है .......अब शहर में जो नए मकान बन रहे हैं इसी पत्थर से ...वो सब मशीन से कट के पोलिश हो के रहे हैं ...पर वो बात कहाँ जो उन पुराने अनगढ़ पत्थरों में है ........किले में - जैन मंदिर हैं ....... बाहर से एकदम सपाट हैं .....यूँ ही भोंडे से .........पर अन्दर जाने पर तो यूँ लगता है की मानो साक्षात इश्वर ने ही बनाया होगा .........किले के बाहर शहर में हवेलियाँ हैं पुरानी ....पटवों की हवेली ...सालम सिंह की हवेली और नाहर सिंह की हवेली ........आँखों में समाता नहीं है उनका सौंदर्य ....... किले के ऊपर दीवारों पर पुरानी तोपें रखी हैं ...वहां अब view point बन गए है ......वहां से चढ़ के नीचे देखा तो देखता रह गया .........नीचे नया शहर बसा हुआ था .......यूँ लगा मानो किसी ने वहां दूर ज़मीन पे कोई खूबसूरत पेंटिंग बना रखी है ...........जिला प्रशासन ने इस बात का ख्याल रखा है की शहर में बनने वाली हर इमारत शहर की पारंपरिक निर्माण कला के अनुरूप हो .......इस से पूरा शहर एक कलाकृति सा लगता है
अब ये तो बात हुई इमारतों की .......सुन्दर इमारतें तो किसी भी शहर में मिल सकती हैं ....पर लोग ???????? किले में हज़ारों लोग रहते है ......- घंटे बस यूँ ही घूमता रहा उन गलियों में ......इस दौरान कई लोगों ने आगे बढ़ के बुलाया .......ढेर सी बातें की ...हाल चाल पूछा ....चाय पानी पिलाया .....इतने प्यारे लोग ....इतने मिलनसार लोग ......और इतनी मेहमान नवाजी .....आम आदमी में .....dukaan दार अक्सर सड़क चलते लोगों को आवाज़ दे कर बुला लिया करते हैं ....पर इन टूरिस्ट प्लेसेस पर आम आदमी नहीं बुलाता इस तरह ....पर जैसलमेर के लोगों की बात ही कुछ और है .....
राजस्थान से बहुत पुराना रिश्ता रहा है मेरा .......मुझे कलकत्ते से इश्क है .....बंगाल से नहीं ......बनारस से इश्क है ...UP से नहीं ....पर मुझे समूचे राजस्थान से इश्क है ........क्योंकि पूरे राजस्थान में ...बात है कुछ .......वो कहते हैं रंग रंगीलो राजस्थान .......इतनी सम्पन्नता ....सिर्फ आर्थिक नहीं........सांस्कृतिक सम्पन्नता ...जो राजस्थान में दिखाई देती है वो कहीं नहीं देती .........यूँ समझ लीजे हर गली हर गाँव टूरिस्ट प्लेस है .......हर शहर का रंग अलग .....जयपुर गुलाबी है तो जैसलमेर पीला ...जोधपुर लाल तो कोई और किसी और रंग में रंगा है .........सबकी वास्तु कला अलग ....हर शहर का अपना distinct स्टाइल है architecture का .......खान पान ....इतना rich cuisine हमारे देश में किसी region का नहीं जितना राजस्थान का .......इसपे एक पूरी पोस्ट लिखने का इरादा है मेरा ....पर लाइनें लिखे बिना पोस्ट अधूरी सी लगेगी .......हिन्दुतान की सबसे बेहतरीन चाय राजस्थान में मिलती है ( साउथ के बाद ).....नमकीन ...कचोरियाँ ......पकोड़े ...यानी बेसन के सब item ....राजस्थान के अलावा कही अच्छे नहीं बनते ........अगर कही बनते हैं तो मान लीजिये ...बनाने वाला राजस्थानी ही होगा ...........राजस्थान के स्टेशनों पर भी जो पकोड़े मिल जाते हैं वो आपको अपने शहर की सबसे अच्छी दूकान में नहीं मिलेंगे .......और खाना ........इतने सालों में मैंने आज तक राजस्थान में कभी घटिया खाना नहीं खाया ... किसी होटल ..ढाबे में ... किसी के घर में ........मेरे एक दोस्त होते थे बूंदी में .....एक दिन वो बताने लगे की यहाँ किसी राजपूत के घर में बहू आपको एक महीने तक हर रोज़ नए किस्म का मांस पका कर खिला सकती है ....तो उनके बगल में एक मारवाड़ी भाई बैठा था .......वो बोला देख लो इतनी गवार हैं यहाँ की लडकियां .....मारवाड़ की लड़की आपको साल भर रोज़ एक नया पकवान बना कर खिला सकती है ....इतनी समृद्ध है राजस्थान की पाक कला .......बाकी फिर कभी





2 comments:

  1. आपकी पोस्ट पढकर हमने भी वहाँ कि सैर का आनदं ले लिया

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