Wednesday, September 7, 2011

मुफ्त का पिल्ला मर जाता है

        दोस्तों बड़े उथल पुथल भरे रहे ...... पिछले कुछ हफ्ते ......राज सिंहासन को डोलते देखा ...........बर्फ को खौलते देखा........राजा भिखमंगा देखा.....रानी को नंगा देखा......अब साहब रानी को ही नंगा देख लिया तो बच ही क्या गया .....पर एक बात है ........नंगी घूम रही थी रानी .......अब ये तो पता नहीं की उसे अपने नंगेपन पे शर्म आयी या नहीं ....पर भैया हमें बहुत शर्म आयी उसे नंगा देख के .......बहुत सुन्दर लगती है औरत पूरे कपड़ों में .......ढकी छुपी ....नंगा शरीर घिनौना लगता है ..........घिन आयी उसका घिनौना शरीर देख कर .......जुगुप्सा ( शायद यही शब्द है ) का भाव पैदा हुआ मन में .......घृणा हुई ....उस से .....और अपने आप से भी ........
                                         अन्ना साहब हजारे के आन्दोलन में शुरू से अंत तक शामिल रहा ........शारीरिक रूप से भी और भावनात्मक रूप से भी ........अपने शहर में हम लोग भी क्रमिक अनशन पर बैठे थे .....बड़े अजीबो गरीब से अनुभव रहे इस बार .........खट्टे मीठे ......कुछ कडवे भी .......मेरे पिता जी शुरू से ही कुत्ते पालने के शौक़ीन रहे हैं .......सो हमारे घर में हमेशा कुत्ते पलते थे .......पर हम यूँ ही किसी को कोई पिल्ला नहीं देते थे ....हमेशा पैसे ले कर ही देते थे ....पिता जी कहा करते थे कि ....मुफ्त का पिल्ला मर जाता है ..........मुफ्त में मिला होता है न ...इसलिए कोई उसकी केयर नहीं करता .......इस बार अन्ना के आन्दोलन में यही महसूस हुआ ......ये आज़ादी साली ........मुफ्त का पिल्ला  है ......पिल्ला नहीं बल्कि पिल्ली है ....पिल्ले की तो फिर भी कुछ कद्र होती है ..........अब ये पिल्ली बेचारी कितने दिन जिंदा रहेगी कह नहीं सकते .........दरअसल हमने तो कुछ किया नहीं इसके लिए .......उस ज़माने में कुछ दो चार लोग मरे थे .....कुछ ने डंडे खाए थे ......और गांधी के चक्कर में पड़ के अहिंसा की माला जपते ....यूँ ही भजन गाते तो हमें आज़ादी मिल गयी .......मुफ्त में ......अब इस मुफ्त की पिल्ली की कौन परवाह करता है .........इसके लिए अगर हमने अपना खून बहाया होता ............पूरी एक पीढ़ी की अगर कुर्बानी दी होती .....अगर दस बीस लाख लोग कुर्बान हुए होते तो शायद इसकी कीमत आज हम लोगों को पता होती .......उस दिन टीवी पर अमर सिंघवा बोल रहा था ....अरे ये कोई जन आन्दोलन नहीं ......कुछ दो चार दस लोगों का आन्दोलन है .....हाँ अलबत्ता टीवी का आन्दोलन है ......उस दिन ये सुन के मुझे बहुत गुस्सा आया .....मैंने उसे मोटी मोटी गालियाँ दी ....हिंदी में .....पर अब मैं यूँ सोचता हूँ की उस दिन मैं बस यूँ ही इमोसनल हो रहा था .......अमर सिंघवा सही बोलता है ........TRP के चक्कर में टीवी का आन्दोलन था ये ......एक बात एकदम पक्की है ....ये हमारे यहाँ जितने भी धर्म करम के अड्डे चल रहे हैं .......ये मठ मंदिर,गुरद्वारे,church ( मस्जिद नहीं लिखूंगा , कोई सिरफिरा ज़न्नत के चक्कर में गोली मार देगा .......या फिर ईश निंदा का केस लग जाएगा ) इन सब में से पैसे वाला angle हटा दो ......यानी पैसे का चक्कर बंद कर दो ......दो दिन में इन सबकी पोल खुल जायेगी .........चौथे दिन दुकान बंद कर देंगे .......और जितने ये तथा कथित जन आन्दोलन हैं इसमें से ये टीवी ,प्रेस और publicity का चक्कर हटा दो ........इनकी भी पोल खुल जायेगी .....अब साहब हुआ यूँ  की हमें टीवी पे ये बताया गया की अब युवा शक्ति जागृत हो गयी है और अन्ना के साथ आन्दोलन में कूद पड़ी है ........अपना तो दिल बाग़ बाग़ हो गया ......सो हम भी घर से बाहर निकले ...पूरा शहर घूम डाला .....युवा शक्ति कहीं कूदती नज़र न आयी .......कई कॉलेज देखे...स्कूलों के बाहर चक्कर लगाया ......घूमते घुमाते वहां पहुंचे जहाँ अनशन चल रहा था .......वहां पांडाल में दस पंद्रह लोग बैठे थे ........हमारे जैसे मोटे पेट वाले ठलुए .......युवा शक्ति नदारद थी .......अब मुझे तो भाई बड़ी हीन भावना हुई .....सारे देश का युवा कूद फांद रहा ....ये जालंधर वाले कहाँ रह गए .....पूरे शहर में कहीं कोई हलचल नहीं .........शाम को मशाल जलूस निकला ......हमारे लोकल सांसद के घर तक जाना था ....बमुश्किल सौ दो सौ आदमी थे .....रास्ते में कुछ लोग अपने घरों के सामने खड़े तमाशा देख रहे थे ....हमने उनसे  आह्वाहन किया ....आप भी इस जन आन्दोलन में शामिल होइए ......पर क्या कहें भैया ......जन आन्दोलन में जन शामिल न हुए .....पंद्रह लाख की आबादी वाले शहर में 200 लोगों का अपार जन समर्थन इस जन आन्दोलन को मिला ........
                                                खैर हमने अगले दिन अपने शहर की युवा शक्ति को जगाने का निर्णय लिया और अपने एक दोस्त के साथ पहुँच गए खालसा कॉलेज ......वहां कॉलेज के gate पर हमने पोस्टर बनाने शुरू किये ....अन्ना के समर्थन  में ....मै भी अन्ना ...तू भी अन्ना .......कुछ तमाशबीन  इकट्ठे हुए ...पर न कोई हलचल न उत्साह .......कुछ एक के हाथ में हमने आग्रह पूर्वक वो पोस्टर पकडाए ......पर ज़्यादातर युवा शर्मा रहे थे उन्हें पकड़ने में .......हमने उन्हें प्रोत्साहित किया ...अरे भाई ये तुम्हारा ही देश है ......ये तुम्हारा पैसा है जो लूटा जा रहा है ......और इसे लूटने वाले कितनी बेशर्मी से लूट रहे हैं ....बिलकुल नहीं शर्मा रहे ....यार तुम उनके खिलाफ आवाज़ उठाने में क्यों शर्मा रहे हो ......फिर एक लड़का सामने आया ....उसने वो पोस्टर मेरे हाथ से ले लिया .......और तन के खड़ा हो गया ........मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा ..........फिर उसके दोस्त ने अपने मोबाइल में उसकी फोटो खींची .........और उसके बाद उस लड़के ने वो पोस्टर नीचे ज़मीन पर रख दिया ...और वो दोनों वहां से चले गए .........खैर किसी तरह हमने दो तीन लड़कियों को मना लिया की आप भी हमारे साथ ये पोस्टर बनाइये ........वो तीनो भी पोस्टर बनाने लगीं .......उन्हें देख के कुछ लड़के भी रुके ........पर माहौल में कोई गर्मी न आयी ........हम लोग वहां दो तीन घंटे रहे ........इस दौरान हमारे सामने से कोई पांच सात सौ युवा निकले होंगे ......हमने सबसे आह्वाहन किया की आप भी इस जन आन्दोलन में शामिल हों ........पर ........सबसे ज्यादा दुःख इस बात का हुआ कि ज़्यादातर युवा हमें चोरी चोरी .....कनखियों से ताकते हुए .......बच के निकल रहे थे .......उनमे इतनी भी हिम्मत या हौसला न था कि वहां रुक के एक नज़र भर देख ही लें कि आखिर हो क्या रहा है ........और तो और ....उन दो तीन घंटों में कम से कम दस lecturers और professors हमारे सामने से निकले होंगे ........किसी ने हमारी तरफ देखा तक नहीं .....शामिल होना या प्रोत्साहन देना तो दूर की बात है ........जालंधर शहर education का hub माना जाता है punjab में ......सैकड़ों स्कूल कॉलेज हैं यहाँ ......पूरे देश से बच्चे आते हैं पढने ......बड़े बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज है ....lovely university है ...जहाँ सुनते हैं की 35000 युवा पढ़ते हैं .......कही कोई युवा नहीं उठ खड़ा हुआ ......टीवी पर नारे लग रहे थे ........मै भी अन्ना ...तू भी अन्ना ....पर हमारे यहाँ था ....तू ही अन्ना .......फिर मुझे वो दिन याद आया ...पिछले साल ...उस दिन punjab state games का समापन समारोह था .....पंजाब सरकार ने धर्मेन्द्र और उनके दोनों पिटे हुए फिल्म स्टार बेटों को बुला रखा था burlton park में .......मेरी बेटी को भी मेडल मिलना था .......उस दिन देखा था मैंने अपने शहर की युवा शक्ति को ........वहां burlton park में कूदते .......लाखों की भीड़ रही होगी .......एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे लोग .......bobby deol जैसे चूतिया, third क्लास, C grade फिल्म स्टार को देखने के लिए ........
                                         कितना सही कहता है अमर सिंघवा .........अबे कुछ नहीं ....हज़ार दो हज़ार लोग हैं .....काहे का जन आन्दोलन .......बाकी सब टीवी की महिमा है .......सब TRP का चक्कर है ........एक नंबर के चूतिया थे अँगरेज़ ....यूँ ही छोड़ के चले गए ......कहने को आजादी मिल गयी .......मुफ्त का पिल्ला है ...देख लो कद्र .......अब ये लोकपाल बिल भी .....देख लेना ........मुफ्त का पिल्ला है ........इसका भी वही हाल होगा ........और हमारी सरकार ....और ये कांग्रेस पार्टी .........यूँ ही खाम खाह नंगी हो रही है .......अबे झुनझुना है ...पकड़ा दे यूँ ही ....lolly pop है ...डाल दे मुह में .....RTI का lolly pop भी तो दिया है हमारे मुह में .......क्या मिल गया उसे चूस के .......शहल्ला मसूद तेरहवीं है शहीद होने वाली ........बाकी हमारे जैसे .....रोज़ डालते है RTI ...आज तक कही से कोई जवाब नहीं आया ........कोई सूचना नहीं .......एक और मामले में प्रिंट मीडिया ......इलेक्ट्रोनिक मीडिया ......सीबीआई .....state govt ...central govt ....cvc .... मानवाधिकार आयोग ...बाल आयोग....... लोकायुक्त..... सबको लिख चुके हैं .....लूट बदस्तूर जारी है ......मै भी अन्ना .....तू भी अन्ना ....मुफ्त का पिल्ला मत बनाओ यार अन्ना को .............और लोक पाल को ....क्योंकि मुफ्त का पिल्ला मर जाता है .......इसके लिए सचमुच उठाना पड़ेगा .....सचमुच सड़क पर उतरना पड़ेगा पूरे देश को .......अँगरेज़ चूतिया थे ...छोड़ के चले गए यूँ ही .....भ्रष्टाचार यूँ ही नहीं चला जाएगा .......इन चार लोगों के नारे लगाने से ...सबको उतरना होगा सड़क पर इसके खिलाफ ........कीमत चुकानी होगी ........क्योंकि मुफ्त का पिल्ला मर जाता है

6 comments:

  1. First of all...welcome back :)....we missed you......
    Youth in Delhi was better...there were hordes of students who reached ramlila maidan...shouted hoarse in ana's samarthan....
    Shreya said it gave them a high..shouting at the top of their voices 'Vande matram' ..but then it started getting a li'l out of hand when people thought the revolution gave them a licence to drive drunk ,without helmets jumping traffic lights....there was so much of slush outside the venue..khali pattal aur khali bottles aur kichad
    Par fir bhi sahi tha Delhi ka youth ...participate toh kiya :P

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  2. इस ब्लॉग में आपका गुस्सा बिलकुल उभर कर बाहर नहीं आ पाया..मैं आपकी व्यथा को, थोडा ही सही पर, समझ सकता हूँ.....लेकिन मुझे ऐसा लगता है की हर आन्दोलन की शुरुआत ऐसे ही होती है...कुछ लोग शुरू करते हैं..उनको प्रताड़ित किया जाता है...जनता फिर धीरे-२ जगती है और फिर वो आन्दोलन देशव्यापी हो जाता है....हाँ, कुछ कुचल भी दिए जाते हैं. आप आन्दोलन को जन्म दे सकते हैं उसका रूप क्या होगा ये आपके या किसी के भी हाथ से बाहर की चीज़ होती है..सालों लगते हैं साहब...आन्दोलन को अपना रूप लेने में....हमें पिल्ला भले मुफ्त का मिल गया पर इसपे खर्च करने में अब नहीं कतराएंगे....

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  4. sahi kaha aapne muft ka pilaa mila islie ye haal hai.aapki kuch baton se me bhi ittefak rakhti hu ki agar ye paise ka game band ho to dharam sthan bhi wo na rahenge jo aaj hai .aur lokpal ka bhi log kya haal karenge ye sochne ki baat hai...par jagrukta aai hai is baat se inkaar nahi kiya ja sakta....acchi post...

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  5. great...one ajit ji..bina chutiya shabd ke bhi dhar rahegi..aapka akrosh samajh me aata hai. i would love to publish all ur articles.

    rakesh tiwari
    hindi times

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