Monday, October 17, 2011

ऐ मेरे शहर ए बनारस.......भाग 2

                                                तो बात चल रही  थी बनारस की संगीत परंपरा की ...........कबीर चौरा से जो परंपरा शुरू हुई वो धीरे धीरे पूरी दुनिया में फ़ैल गयी ........बनारस चूंकि प्राचीन काल से ही शिक्षा और संस्कृति का केंद्र रहा इसलिए पूरे विश्व से छात्र वहां आते रहे हैं ...........यही संगीत में भी हुआ .......जहान  भर से संगीत के छात्र आते रहे और सीखते रहे ....आज हिन्दुस्तानके शास्त्रीय संगीत में बनारस घराने की छाप दिखती है ......यहाँ के उस्ताद लोग  गुरु शिष्य परंपरा में अपने चेलों को बिना कोई पैसा लिए सिखाते हैं .......लड़के पहले तो गुरु के घर में ही रहते थे ......अगर जगह न हो तो बाहर कहीं कमरा ले लेते हैं ..........आज भी आप कबीर चौरा चले जाएँ तो हर कोने से संगीत की स्वर लहरियां उठती सुन जायेंगी ...............बनारस अत्यंत प्राचीन काल से धर्म और संस्कृति का केंद्र रहा ......हमेशा से ही लोगों को आकृष्ट करता रहा ........हिंदुत्व में चूंकि कभी कोई बंधन नहीं रहा ...सोचने की और पूजा पद्धति की पूरी आजादी रही इसलिए हमेशा बनारस में नयी सोच पनपती रही ........वो चाहे आज से 2700  साल पहले महात्मा बुद्ध रहे हों या हाल के कबीर या रविदास ..........बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ यहाँ बनारस में .......सारनाथ ,  कोई 6 -7  किलोमीटर दूर एक घना जंगल  हुआ करता था कभी ....जहाँ गौतम बुद्ध ध्यान लगाते थे ....आज सारनाथ एक बहुत बड़ा tourist  spot  है जहाँ सारी दुनिया के buddhists  चले आते है ...शांति की खोज में ..........
                                                   संस्कृति और शिक्षा का केंद्र होने के कारण दुनिया जहां के लोग यहाँ आते रहे और यहीं के हो कर रह गए ....इसलिए इस क्षेत्र में कलाओं के विकास हेतु एक ऐसी ज़मीन तैयार हुई जिसमे  आज तक फसल लहलहा रही है  ......सभी ललित कलाएं यहाँ पनपी ...संगीत हो या साहित्य , चित्र कला .....नाट्य ....नृत्य........ तुलसी ने रामचरित मानस का बहुत बड़ा भाग यहाँ गंगा किनारे , बनारस में बैठ के लिखा ...वो जगह आज तुलसी घाट कहलाती है और उसकी मूल पांडुलिपि का एक भाग आज भी यहाँ सुरक्षित रखा है .......प्राचीन भारत के संस्कृत साहित्य से शुरू हुई परम्परा आज भी जीवित है ....आज भी जो  साहित्य बनारस में लिखा पढ़ा जाता है उसकी मिसाल देश में नहीं मिलती .........
                                                    बनारस चूंकि शुरू से धर्म और संस्कृति का केंद्र रहा इसलिए यहाँ ज्यादा रुझान सरस्वती की साधना का रहा ....लक्ष्मी के उपासकों के लिए कुछ था नहीं ......सो सरस्वती के साधकों की फक्कड़ मस्ती और अलमस्त जीवन शैली बनारस में रच बस गयी ..........काशी शिव की नगरी थी .....भांग शिव को बेहद प्रिय थी ......सो उनके उपासकों ने भी शुरू कर दी .......काशी की भांग ठंडई ( बादाम के साथ भांग घोट का बनाया गया अत्यंत स्वादिष्ट पेय ).........आज भी गली गली में बिकती है ....पर आप कृपया सावधानी से ग्रहण करें .....हालांकि दुकानदार नए लोगों से पूछ लिया करते है ....क्यों बाबू....चलेगा घोटा  ?????? आप हलकी फुलकी मिलवा सकते हैं .........अब भांग पीने के बाद कमबख्त भूख बड़ी तेज़ लगती है ......सो बनारस का भोजन .......वाह .....वाह .....क्या बात है .....इसपे तो मैं 4 -6  पोस्ट्स लिख सकता हूँ  ....सो बनारस में भोजन की शुरुआत होती है सुबह के नाश्ते से .........ऐसा बताते हैं की पुराने ज़माने में कोई बनारसी कभी घर पे  नाश्ता नहीं करता  था ......वहां जगह जगह दुकानों पे और ठेलों पे कचौड़ी जलेबी बिका करती थी ....आज भी बिकती है ....एक पूरी गली है बनारस में ....नाम है कचौड़ी गली ......वो केंद्र था कभी बनारसी नाश्ते का ........अब ये कचौड़ी असल में पूड़ी है जिसे थोडा अलग ढंग से बनाते हैं .........उसमे उड़द की दाल की पीठी भरते है और उसे करारा कर के तलते है .........पहले देसी  घी  में बनती  थी ...अब refined  में बनाते हैं .......साथ में सब्जी .....आज भी दोने और पत्तल (पेड़ के पत्तों से बनी use  and  throw plates )  में ही परोसते हैं .....फिर उसके बाद जलेबी ........ये कचौड़ी और जलेबी का combination  है ....जैसे coke  और चिप्स का है ........अब जलेबी तो दुनिया जहां में बिकती है ....पर बनारस की जलेबी की तो बात ही कुछ और है .........यूँ  बात तो बनारस की हर मिठाई  की अलग है ......बनारस शुरू से मिठाई  का गढ़  रहा है ....ऐसा बताते हैं की शिव जी को रबड़ी बहुत पसंद थी .......सो माता पार्वती का पूरा दिन रबड़ी बनाने  में ही बीत जाता था ....लोग बताते हैं की आज भी बनारस में वैसे  ही रबड़ी बनती है जैसी   पार्वती जी बनाती  थी  ........बनारस की रबड़ी मलाई  ...वाह ....इसके  बाद बर्फी  .......रसगुल्ले ........गुलाब जामुन.......खीर मोहन और न जाने क्या क्या ........   ये मिठाइयाँ  तो दुनिया जहान में बनती  हैं पर जो बात बनारस में है वो कहीं नहीं .....जैसे जो बात कलकत्ते के सन्देश में है वो कहीं और आ ही नहीं सकती  ......
                                   एक बहुत बड़े हलवाई ने एक बार नई दुकान खोली अम्बाला में ...कारीगर मंगवाए  बनारस से ........पर वो बात नहीं आयी   ......मालिक ने पूछा क्या हुआ  ???????? कारीगर बोले .......बाबू ,  असली दम वहां के मावे  ( खोया )में होता  है .....सो भैया मावा बनारस से आने लगा ....पर वो बात नहीं आयी ........तो कारीगर बोले अजी वहां का पानी ही कुछ और है ....तो मालिक बोला ...अबे मिठाई में कौन सा पानी पड़ता है ??????? अजी आबो हवा का फर्क पड़ता है ........बनारस की आबो हवा में ही कुछ बात है ............
बनारस की लस्सी के बिना तो कहानी  पूरी हो नहीं सकती  .....दुनिया की सबसे अच्छी लस्सी बनारस में बिकती है ....एकदम गाढ़ी  ......मजेदार  .......yummmmy   .......ये   पंजाब हरियाणा की लस्सी तो लस्सी के नाम पे कलंक है .......... तो ये तो था नाश्ता ........अभी तो दोपहर का भोजन बाकी है फिर शाम को जो बनारस में चाट का culture  है वो लाजवाब है ..........और फिर पान ......पान के बिना तो दास्ताने बनारस अधूरी रह जायेगी ...........पर वो अगले अंक में ........पढ़ते रहिये ....फिर हाज़िर होते हैं ब्रेक के बाद ............




 

6 comments:

  1. अगर बीच बीच में कोई मजेदार वाक्या भी सुना दे तो सोने पे सुहागा हो जायेगा सर जी......
    Those who are from Banaras, are just getting refreshed with your knowledge. Waiting for next print...

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  2. अरे!
    मैं तो पंजाब हरियाणा की लस्सी को ही सबसे बढिया मानता रहा हूँ। कभी बनारस गया नहीं, भांग कभी पी नहीं पर इच्छा बहुत है और आपकी पोस्ट पढकर लगता है कि बनारस की कचौडी जलेबी खाये बिना भारत में जन्म अधूरा है :)

    प्रणाम

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  3. भाई अंतर सोहिल जी ...........मैंने पूरा हिन्दुस्तान घूम के लस्सी की rating निकाली है ..........1 ) बनारस .......2 ) राजस्थान में जोधपुर ,जयपुर ,बीकानेर ,कोटा .....3 ) ....कुछ एक जगहों पर MP में भी मिल जाती है ......हरियाणा और पंजाब की लस्सी तो लस्सी नहीं कलंक है ....इसलिए उसका नाम बदल के white water रख देना चाहिए ....जैसे south में buttermilk कहते हैं ................वैसे यहाँ जालंधर में एक दुकान पे ठीक ठाक सी मिल जाती है

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  4. अच्छे से घुमा रहे हैं आप बनारस..पहला भाग भी अभी पढ़ा...मैं बनारस बहुत साल पहले गया था, इंजीनियरिंग इंट्रेंस की परीक्षा के लिए..उसके बाद जाना हुआ ही नहीं...जबकि मेरे शहर आने जाने के रास्ते में ही पड़ता है बनारस..

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  5. बनारस की सैर बहुत ही मनोरंजक और रोचक रहा. बहुत धन्यबाद.

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  6. Arre aapke post itni jaldi khatam kahe ho jaatee hain...kuch lamba likhiye maharaaj....maja a a gya!

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