छठ पूजा का त्योहार बीत गया, ........
अखबारों में खूब चर्चा रही ...........बाजारों में खूब रौनक रही
............खूब खरीदारी हुई .............आदमी पे आदमी चढ़ा जा रहा था
............खूब राजनीती हुई ......मुझे याद आया कि हिन्दुस्तान वाकई बदल
गया यार ..........मुझे वो रात याद आ गयी .........दिवाली की रात थी
....1985 में ........मैं दिल्ली से अपने गाँव गया था
...दिवाली के अगले दिन हमारे गाँव में कुश्तियां होती हैं सो उसमे लड़ने गया
था ........साथ में एक दोस्त भी था ............शाम सात बजे बनारस उतरे
....8 बजे तक सैदपुर पहुंचे ......वहाँ से एक और बस पकड़ के 8
किलो मीटर दूर अपने गाँव पहुंचना था ..........रात के नौ बजे थे ....बस
चली तो चारों और घुप्प अँधेरा था .........दिवाली की , अमावास की रात और
किसी गाँव में एक दिया तक नहीं ........न कोई पटाखा ....न कोई शोर शराबा
....मैं हैरान था ......आखिर हुआ क्या .......मैंने अपने दोस्त से कहा कि
ज़रूर यहाँ कोई बहुत बड़ी दुर्घटना हुई है .......इसलिए लोग दिवाली नहीं
मना रहे ..........खैर घर पहुंचे तो वहाँ मेरे चचेरे बड़े भाई सूरन की
सब्जी बना के हमारा इंतज़ार कर रहे थे ......पूर्वांचल में दीवाली की रात
सूरन ( जिमीकंद , yam ) की सब्जी खाने की परंपरा है
........खाना खाते हुए मैंने पूछा ....क्या हुआ ????? लोग दिवाली नहीं मना
रहे ???????? क्यों , मनाई तो है ........अरे क्या मनाई ...न कोई दिया
...न रोशनी ...न पटाखे ..........अरे दिए जलाए थे शाम को .....बुझ बुझा गए
....इतने महंगा हुआ है तेल सरसों का ......... किसके पास है कि सारे रात
जले ..........खाना खाओ और सो जाओ ............उस दिन एक नया हिन्दुस्तान
देखा मैंने ............फिर 1990 के बाद हम वहीं रहने लगे
.........रक्षा बंधन वाले दिन भी कुछ नहीं ....दोपहर में एक पंडित जी आये
.....उन्होंने सबके कान पे ताज़े उगे जौ के पौधे रखे ( पता नहीं क्या कहते हैं उन्हें ) .....शायद कलाई में
रक्षा भी बाँधी ....दो रु ले के चले गए .....ये था रक्षा बंधन .........तब
कोई बहन किसी को राखी नहीं बांधती थी वहाँ गाँव देहात में ..........फिर
एक दो साल बाद अचानक राखी बाँधने का चलन हो गया ...हमारा एक भतीजा अपनी बहन
से राखी बंधवाने 20 किलो मीटर दूर गया और लौटा तो कलाई में शायद 20
राखियाँ बंधी थी .....शायद पूरे गाँव से बंधवा आया था .....आज राखी पे
हमारे घर के सामने वाली सड़क पे जाम लग जाता है .............बहना जा रही है
भैया को राखी बाँधने .......... धीरे धीर लोग दीवाली भी मनाने लगे ....फिर
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की बात रही होगी ....मैंने ध्यान दिया कि अचानक बाज़ार में बहुत से नए
स्टाल खुल गए है जहां ढेर सा नए नए किस्म का फल फ्रूट बिक रहा है
.............खैर बात आयी गयी हो गयी ....अगले साल फिर यही देखा ...तो एक बार बस यूँ ही पूछ लिया ....ये क्या चक्कर है
...ये अचानक इतने सारे फ्रूट के स्टाल क्यों ....साथ में एक दोस्त था
.....बोला ...अरे नहीं जानते ....छठ है न .......वो क्या होता है
??????? अरे बिहारिनों का कोई व्रत होता है .........व्रत में इतना फ्रूट
खाती हैं ......अरे नहीं , खाती नहीं हैं .......कोई पूजा वूजा होती है
.....हमने कहा होती होगी .............और फिर बिहारियों को चार मोटी मोटी
गाली दे के चर्चा समाप्त हो गयी ( बिहार उन दिनों भ्रष्टाचार का प्रतीक था न
....इसलिए ) ........फिर दो तीन साल बाद गाँव में एक बार बड़ी चर्चा सुनी
कि कोई एक भाभी हमारी , पड़ोस की , छठ का व्रत कर रही है ...वो पहली बार
हमारे गाँव में किसी औरत ने छठ का व्रत किया था .....अपन ठहरे परम्परावाद
और ढोंग ढकोसले के घोर विरोधी सो फिर चार मोटी मोटी गालियाँ दी ....उस भाभी
को .....इस व्रत को ......ढोंग ढकोसले को .....ये साला बिहार का कोढ़ यहाँ
UP में भी फ़ैल गया ....वगैरा वगैरा .........पर भैया ये कोढ़
एक बार जो फैला तो ऐसा फैला की पूरे देश में फ़ैल गया ........आज हमारे गाँव
में सैकड़ों औरतें ये व्रत करती हैं .........वहाँ बम्बई में संजय निरुपम
और शिव सेना कटने मरने को तैयार है .........अखबार छठ की
बधाइयों से भरे पड़े हैं ..........लुधिआना जालंधर में आप्रवासी मजदूरों को
खुश करने के लिए तालाबों नहरों के पास राजनैतिक पार्टियां टेंट लगा के
बैठी हैं .......... बधाइयां दे रही हैं . ( इस व्रत में लोग नदी तालाब में
कमर भर पानी में खड़े हो कर सूर्य को जल चढाते हैं ) अब जालंधर में कहाँ
से लायें नदी तालाब सो एक नहर जो बरसों से सीवर में तब्दील हो गयी है
......गंदगी से बजबजाती ....उसमे बाकायदा नहर विभाग से पानी छुड्वाया गया
.......अब उस गन्दी घिनौनी नहर में भाई लोग घुस के पूजा कर
रहे है और अखबार गरिया रहा है कि देखो नहर विभाग ने नहर की सफाई भी नहीं
कराई .......फुल राजनीति हो रही है ........मीडिया ने अपना पूरा रोल अदा
किया है .............छठ पूजा तेज़ी से पूरे देश में लोकप्रिय हो गयी है
............पूर्वांचल समाज में ( यहाँ पंजाब में इन्हें आप्रवासी मजदूर
लिखा जाता है और आम बोलचाल में " साले भइये " .........बड़ी हिकारत से
देखते हैं इन्हें .......पर जब खुद जा के वहाँ इंग्लॅण्ड अमेरिका में जब
खुद भइयों की तरह दुत्कारे जाते हैं तो शिकायत करते हैं की देखो racial abuse हो रहा है ) ................
बहुत बड़ा बाज़ार बन चुकी है ये दुनिया ...........माल बेचना है , चाहे जैसे
.........सो त्योहारों के बल पे बेचो .....नए त्यौहार इजाद कर रहा है
बाज़ार ...........किसी ज़माने में valentine's day
आया था वो अभिजात्य वर्क का त्यौहार था ...........पर बाज़ार को जल्दी ही
समझ आ गया की माल बेचना है तो आम आदमी के लिए त्यौहार इजाद करो
............लोगों को त्यौहार मनाना सिखाओ ........सो बाज़ार हमें याद दिलाता है की ....अबे ये वाला त्यौहार नहीं मनाते हो ............ बड़े backward
घटिया लोग हो यार ........... त्योहारों से वोट बैंक बन रहा है
........TITAN लोगों को बता रही है की राखी पे जब बहना राखी बांधे तो उसे
बदले में आप ये हमारी घडी उसे पहना दो .........त्यौहार पे घडी बेच मारो
.......दिवाली पे मिठाई मत दो , जहर है .............कुरकुरे दो यार
...........कैडबरी की चोकलेट दो भाई ..........बाज़ार लोगों को
याद दिला रहा है .......... धनतेरस आ गयी भाइयों ...........निकालो पैसे
........फिर भैया दूज ............करवा चौथ .........अक्षय तृतीया
........और न जाने कौन कौन सी तीज .........सीधे सादे पर्व होते थे हमारे समाज के ......... आज बाज़ार का instrument बन गए हैं ............सालों पहले उत्सव फिल्म देखी थी ........उसमे देखा की किसी समय भारत में साल में 200 उत्सव मनाये जाते थे ........लगता है भारत में वो दिन लौट रहे हैं ...वो दिन दूर नहीं की जब भारतीय बाज़ार भी साल में 200 उत्सव मनवाएगा हमसे .....
Ajit ji this is not the current problem of India it is since a long time people have been investing in such festivals ...we would be feeling very happy if this much investment would have been done on brooming up their house at least that would have brought a civic sense in the people who go on following any festival without knowing about it many people dont even know what is the story behind keeping any kind of fast but den also ...we can say or society can be compared with those monkeys who threw their cap watching the others doing the same
ReplyDeletethis comment was made by sarvagyaa singh .......from my account ...
ReplyDeleteajit
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ReplyDeleteभाई जनमेजय जी ........मेरा उद्देश्य आज के बिहार को गरियाना नहीं है बल्कि बाज़ार कैसे हमारा और हमारी भावनाओं का दोहन करता है ....इसे रेखांकित करना है ......किस बेशर्मी से हमें ठगा जाता है .......इसका दर्द व्यक्त करना चाहता हूँ .....दूसरे बजबजाती नाली में कमर तक डूबे , सूर्य को अर्घ्य चढाते उस व्यक्ति के लिए किसी अखबार ने नहीं लिखा की किस जहालत में फंसा है यार .........इस गन्दी नाली से और आस्था के इस दलदल से बाहर निकल भाई ........हमारे देश में समाज सुधारकों ने सत्रहवी शताब्दी में लोगों को अंधविश्वासों से और अंध श्रद्धा से बाहर आने के लिए प्रेरित किया पर आज का मीडिया फिर उन्हें उसी दलदल में धकेल रहा है .....ढोंग ढकोसले को बढ़ावा दे रहा है .....भूत प्रेत दिखा रहा है ......और सब चुपचाप देख रहे हैं .........इस लेख के माध्यम से मैंने विद्रोह किया है ....इस व्यवस्था के खिलाफ ....क्षमा करेंगे .........तैमूर
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ReplyDeletevery good sir ji पर जब खुद जा के वहाँ इंग्लॅण्ड अमेरिका में जब खुद भइयों की तरह दुत्कारे जाते हैं तो शिकायत करते हैं की देखो racial abuse हो रहा है, ye baat sirf usiko samajh aaegi jo kabhi bahar niklega apne gali, kooche, aur mohalle se, jo ghar ka hi sher bana rahega wo doosre ko saala bhaiyya hi kahega
ReplyDeleteवो दिन दूर नहीं की जब भारतीय बाज़ार भी साल में 200 उत्सव मनवाएगा हमसे .....
ReplyDeleteभाई जन्मेजय जी
ReplyDeleteसमाज सुधार का एक बहुत बड़ा मुद्दा रहा है आम जनता की ढोंग ढकोसले और आडम्बर से मुक्ति ....हर अच्छा समाज कहता है .........शादी में सिर्फ 11 आदमी ले जाओ ......मृत्यु भोज बंद करो ......धर्म से आडम्बर दूर करो .......दहेज़ बंद करो ....सामजिक कार्यक्रमों से आडम्बर हटाओ .......सामाजिक मान्यताएं समय के साथ बदलती हैं ........हमें भी तो बदलना पड़ेगा ........धर्म जाती के नाम पे ये भेद भाव , अस्पृश्यता हटाओगे कि नहीं .........और इसमें सबसे बड़ा रोल मीडिया का है ......हजारों ,लाखों करोड़ों लोगो ने देखा देखी छठ मनानी शुरू कर दी हमारे गाँव में .....पर कितने लोगों ने अपनी बेटियों को ट्रैक सूट पहना के stadium भेजना शुरू किया ???????? या 20 किलो मीटर दूर कॉलेज भेजना शुरू किया .........मीडिया लोगों को बेवक़ूफ़ बना रहा है ....10 %अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभा रहा है .........90 % बिजनेस कर रहा है ......
एक अच्छी स्वस्थ बहस शुरू करने के लिए धन्यवाद ........
अजित
पूजा पाठ को छोड़ देना चाहिए कि नहीं ......ये अच्छा प्रश्न है ........अब कुछ लोग पूजा पाठ में नारियल फोड़ते हैं .........कुछ बकरे कि बलि चढाते हैं .....और कुछ इसी पूजा पाठ में नर बलि , पडोसी के बच्चे की या खुद अपने बच्चे कि बलि चढ़ा देते हैं ........सबकी अपनी श्रद्धा है भाई .........विश्वास है .....क्यों रोकते हो ...........पर रोकना पड़ेगा भैया ....समझाना पड़ेगा ....educate करना पड़ेगा ..........नारियल से काम चला ले यार .......अपना लड़का मत काट मेरे भाई ...........और फिर ये की इस पूजा पाठ से तकदीर नहीं सुधरेगी यार .....पढ़ लिख ले , मेहनत कर ले .............उत्तिष्ठत जाग्रत ............
ReplyDeleteआमीन
अजित सिंह तैमूर
मित्र आपका यह लेख पढ़कर अच्छा लगा। आपने बात तो बहुत सही कही है लेकिन इस बात का कितने लोगों पर असर होता है यह नहीं कह सकते। खैर! ऐसे ही अगर एक-एक व्यक्ति को समझ आ जाये तो कुछ तो सुधार होगा ही।
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