Saturday, January 28, 2012

कलकत्ते के रिक्शा वाले और ये अंग्रेजी स्कूल की teacher

                                                      किसी ज़माने में कलकत्ते में वो रिक्शे चला करते  थे जिन्हें आदमी   पैदल चलते या दौड़ते हुए खींचा करते थे . फिर किसी NGO  ने हो हल्ला मचाया , कुछ मानवाधिकार संगठनों को भी ilhaam  हुआ .....वो भी राग अलापने लगे कि    अरे ये तो अमानवीय है .....degrading  है .......सो बात बंगाल की सरकार तक पहुंची और फिर उन्होंने वो रिक्शे ban  कर दिए .............तो वो बेचारे रिक्शे वाले सब बोले कि  अरे बाबू लोग मानवीय हो या  अमानवीय ....इस से हम लोगों का पेट भरता है , परिवार चलता है .....सरकार बोली ....चिंता मत करो ये पैदल खींचने वाला रिक्शा बंद किया है , साईकिल रिक्शा चलता रहेगा ...सो तुम सब साईकिल रिक्शा खरीद लो .....फिर सरकार और कुछ NGO  ने लोन वगैरह की भी व्यवस्था की और सभी ने साईकिल रिक्शे चलाने शुरू कर दिए ...... पर मेरी समझ  में ये नहीं आया कि  वो पहले वाला रिक्शा अमानवीय कैसे था और ये जो नया वाला साईकिल रिक्शा है ये मानवीय कैसे हो जाता है ........ देश के हर शहर , कसबे गाँव में रिक्शा चलता है .....अगर जनगणना हुई हो तो शायद ये भी खुलासा हो जाए कि  रिक्शा अकेले इस देश में रोज़गार का सबसे बड़ा बड़ा साधन है . अब एक आदमी तपती दुपहर में , या कडकडाती सर्दी में , या फिर मूसलाधार बारिश में आपको ढ़ो के ले जा रहा है ......और आप राजा बाबू की तरह ठाठ से पीछे बैठे हैं ......हुआ तो ये अमानवीय ही , पर इस रिक्शे से उसका पेट भरता है भाई , उसका परिवार पलता है ........ तो फिर जो काम देश के लाखों करोड़ों लोगों को आजीविका देता हो , जिसे लोग हंसी ख़ुशी करते हो ,  वो अमानवीय कैसे हो सकता है. 
                                        पर हमारे जैसे लोग जो  ठलुआ चिंतन करते हैं ....... जिन्होंने  देश की विभिन्न समस्याओं की सिर्फ चर्चा परिचर्चा और विचार विमर्श करने में ही अपना जीवन गला दिया , उनके लिए ये   बड़ा ज्वलंत मुद्दा है . सो हमने इस अमानवीय रोजगारों की सूची में कुछ नए धंधे  जोड़ दिए हैं , मसलन आपको बैठा के पालकी ढोना , अपनी पीठ पर बैठा कर ले जाना , बहंगी में सामान ढोना  या फिर अपनी पीठ पर भारी भरकम सामान ढोना ( पहाड़ों पे और तंग गलियों में ) , मंडियों में ट्रक के ट्रक भरना और खाली करना , बाल्टियों से आपके घर में पानी भरना , मैला सर पे ढोना , crushers  के धूल भरे माहौल में काम करना , ( जहां 2 -3  साल में लोगों को TB  हो जाती है  ) . होटलों और ढाबों में जूठी प्लेटें धोने के बारे में आपका क्या विचार है ?????  या फिर दुबई और सउदी अरब में जहां जला देने वाली धूप में मजदूर दिन भर काम  करते है , या फिर वहाँ इंग्लॅण्ड में शून्य से 20  डिग्री नीचे हड्डियां जमा देने वाली ठण्ड में खुले आसमान के नीचे काम करते लोग .....या फिर उस दिन बनारस रेलवे स्टेशन पे मानव मल मूत्र से भरे गटर में डुबकियाँ लगा कर काम करते वो तीन आदमी ..........ये तमाम लोग जो ये सब काम करते हैं , क्या ये सब मानवीय है .......... 
                                      सो हुआ यूँ की मैं और मेरी धर्म पत्नी एक बार कलकत्ते गए ........बात तब की है जब ये हाथ वाले रिक्शे बंद नहीं हुए थे सो हम दोनों वैसे ही एक रिक्शे पे बैठ के कहीं जा रहे थे ........ हम दोनों की भारी भरकम काया को वो  पतला दुबला सा आदमी दौड़ता खींचता चला जा रहा था ....पसीने से तरबतर ....सो ये देख के मेरी धर्म पत्नी का दिल पसीज गया ....वो द्रवित हो कर बोली देखो बेचारा कितनी मेहनत कर रहा है ....किसी पशु की तरह ....सो मैंने उन्हें ये suggest  किया कि  उन्हें उसकी कुछ मदद करनी चाहिए  , मसलन उतर के पैदल चल लेना चाहिए ....वगैरा वगैरा , पर इसके लिए वो हरगिज़ तैयार न हुई ....खैर गंतव्य पर उतर के उन्होंने उसे 20  रु की भारी भरकम टिप दी और हम अपने रस्ते हो लिए . हम दोनों वहाँ गए थे अपने स्कूल के लिए कुछ अध्यापकों  की नियुक्ति करने . हमारे स्कूल में स्थानीय teachers जो पढ़ाते थे , वो सब उन दिनों 600  से ले कर 1000  रु पाते थे और हमने सुना था की कलकत्ते में बहुत सस्ते teachers मिल जाते हैं . हम वहाँ गए और हमने interview  लिए . बहुत से लोग आये . 6 -7  लोग हमने छांट लिए .वो सब लोग 1200  से 2000  ( साथ में भर पेट भोजन और रहने के लिए एक कमरा ) तक में पढ़ाने के लिए तैयार हो गए .एक हफ्ता कलकत्ते  में रह के हम लोग लौट रहे थे .  सुबह ट्रेन पकडनी थी  . रिक्शे वाले से मैंने पूछा कि  क्यों भैया कितना कमा लेते हो ? उसने मुझे बताया की 100  -150  रु बन जाता है रोजाना .जिन teachers  को ले के हम जा रहे थे वो सब वहाँ कलकत्ते के स्कूलों में 600 -800  की नौकरी करते थे और हंसी  ख़ुशी हमारे साथ 2000  में जा रहे थे  . मैंने अपनी बीवी से पूछा की MA , बी एड  पास आदमी को 30  -40  रु दे के पढवाना अमानवीय है कि नहीं ???????? 
                                  खैर ये बात तो बहुत पुरानी है ....लगभग 10 साल पुरानी ........आज मेरी बीवी पंजाब के एक बड़े स्कूल की प्रिंसिपल है ....उसके स्कूल में 15 -20  teachers  हैं .......सब एक से एक खूबसूरत , पढी लिखी , फर्राटे से अंग्रेजी बोलती हैं , ऊंची एडी की sandil  पहनती हैं और दिन में 3 बार लिपस्टिक लगाती हैं .......अलबत्ता तनख्वाह सबकी 3500  से 5000  के बीच है ........मेरी बीवी को आज भी रिक्शे वालों पर हमेशा तरस आता है और अब भी वो उन्हें हमेशा 10 -20  रु की टिप ज़रूर देती है . 
  


2 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    आज सरस्वती पूजा निराला जयन्ती
    और नज़ीर अकबारबादी का भी जन्मदिवस है।
    बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  2. bade dinon baad dikhe aap, the kahan?

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