कल टीवी पे एक प्रोग्राम आ रहा था .....जिंदगी लाइव ....या ऐसा ही कुछ ......जिसमे वो दिखा रहे थे कि एक मोची , एक कोई खदान मजदूर , ऐसे ही कुछ लोगों ने मेहनत मजदूरी कर के अपने बच्चों को पढ़ा लिखा के डॉक्टर इंजिनियर बनाया वगैरा वगैरा ..........एक अन्य कार्यक्रम में वो एंकर एक लड़की से पूछ रहा था , पढना चाहती हो ? पढ़ लिख के क्या बनना चाहती हो ? डॉक्टर बनना चाहती हो ........ये तो बड़ी अच्छी बात है और हर माँ बाप को अपने बच्चों को पढ़ाना लिखाना चाहिए ..... यहाँ तक तो ये कार्यक्रम बड़े अच्छे थे पर उसमे एक बात कुछ इस तरह व्यक्त की गयी कि ये जूते गांठना , रिक्शा चलाना , आटो रिक्शा चलाना , खदान में काम करना .....ये सब बड़े छोटे और घृणित कार्य है ........इन्हें करने वाले तो इस कार्यक्रम को देख के आत्मग्लानि से ही भर जाएँ ..........सो मैंने इस विषय पर देर तक चिंतन किया ...वही अपना ठलुआ चिंतन ...........और जब आप ऐसा गंभीर चिंतन करें तो नींद बहुत बढ़िया आती है ...और उस नींद की खुमारी में मैं स्वप्न लोक में विचरते हुए एक ऐसे भारत में पहुँच गया जहां उस टीवी प्रोग्राम को देखने के बाद भारत देश के सब लोगों ने अपने बच्चों को खूब पढ़ा लिखा के डॉक्टर , इंजिनियर बना दिया ....जैसे वो राजा मिडास हर चीज को छू के सोना बना देता था ..........भारत में करोड़ों बच्चे डॉक्टर बन गए ....उसके बाद जो बचे वो इंजिनियर बन गए ,फिर कुछ ने MBA कर ली ........लाखों करोड़ों MSc , PHd कर के scientist बन गए ............कहने का मतलब सब पढ़ लिख के टंच हो गए........ देश में राम राज्य आ गया ....... कुछ दिनों बाद मैं उसी TV एंकर के पास पहुंचा और मैंने उसे कालर से पकड़ लिया .......अबे चूतिये ...सारे देश को डॉक्टर इंजिनियर बना दिया ....सब साले डिग्रियां ले के घूम रहे हैं ...काम धाम एक पैसे का है नहीं ........अब डॉक्टर बन गए तो रिक्शा तो चलाएंगे नहीं .......जूते गाँठ नहीं सकते ......सब टाई लगा के ठलुए घूम रहे हैं .....देश का काम कैसे चलेगा ........वो TV का एंकर बोला , देखो भैया प्रोग्राम दिखाते समय हम इतना डिटेल में नहीं सोचते .......डिग्री लेने के बाद लड़का सोचेगा कि उसे अब आगे क्या करना है ......... फिर उसने मुझे धीरे से कान में कहा , क्यों टेंशन ले रहे हो ......ये जितने टाई लगा के घूम रहे हैं न , धीरे धीरे सब लाइन पे आ जायेंगे ........कोई सब्जी बेचने लगेगा , कोई आटो रिक्शा चलाने लगेगा और कोई रिक्शा .
अब आइये आपको एक सच्चा किस्सा सुनाता हूँ .........यहाँ patiala में जहां मेरे बच्चे ट्रेनिंग करते हैं , यहाँ से 14 किलोमीटर दूर , NIS के गेट के सामने एक मोची बैठता है . और हम वहां 14 km दूर , उस से अपने जूते ठीक कराने जाते हैं . और यूँ ही नहीं जाते ....वो 50 ,100 200 रु तक लेता है पर जूते ऐसे बनाता है की सब लाइन लगा के उसके पास आते हैं .......पूरे पंजाब हरियाणा के खिलाड़ी उस से अपने जूते ठीक कराते हैं .....( Adidas , nike के 3000 रु के जूते की जाली 300 में बदल जाए तो क्या बुरा है ) वो मोची रोज हज़ार , दो हज़ार रु कमाता होगा .........
बात तो सुनने में बड़ी अजीब सी लगती है भैया पर सच यही है .........120 करोड़ लोगों के देश में लाखों करोड़ों लोगों को वो सब काम तो करने ही पड़ेंगे जिन्हें आज हम आप हिकारत से देखते हैं ............कुछ लोगों को खेती करनी ही पड़ेगी , कुछ को mason का काम करना ही पड़ेगा , कुछ को जूते ठीक करने ही पड़ेंगे , और कुछ को रिक्शा , ऑटो रिक्शा चलाना ही पड़ेगा ........कुछ को बाल काटने ही पड़ेंगे .......और फिर इंजिनियर की डिग्री ले के बेरोजगार घूमने से क्या ये बेहतर नहीं है कि किसी अच्छे संस्थान से ट्रेनिंग ले के बाल काट के 20 -30 हज़ार रु कमा लिए जाएँ ......विकसित देशों में आज service सेक्टर में काम करने वाले लोग professionals के बराबर पैसा कमाते हैं और दोनों समाज में बराबर सम्मान पाते हैं ....इसके उलट हमारे देश में भी मेहनत कश लोग पैसा तो खूब कमाते हैं पर समाज उन्हें वो सम्मान नहीं देता जिसके वो हकदार हैं .............इसलिए यहाँ मेहनतकश को हीनभावना होती है पर वहां सड़क पे Ice cream बेचने वाला शर्मिंदा महसूस नहीं करता ......आज हमारे समाज में इस सोच को बदलने की ज़रुरत है कि सिर्फ डॉक्टर इंजिनियर ही सम्मान और पैसा पाएंगे .......पूरा देश पढ़ लिख कर.....या proper training ले कर जो भी काम करेगा उसे बेहतर ढंग से करेगा .....मेहनत कशों को हिकारत से देखने की सोच को बदलना पड़ेगा ....डिग्री लेने और शिक्षित होने में फर्क होता है ........डिग्री कुछेक को आवश्यकतानुसार दी जा सकती है पर शिक्षित पूरे समाज को करना ज़रूरी है .
सही कहा, डिग्री से ज्यादा महत्वपूर्ण शिक्षित होना है।
ReplyDeleteबढिया पोस्ट।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
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