पुराने ज़माने में हमारे देश में बड़ी सामाजिक किस्म की फिल्में बना करती थी . शरीफ सी हिरोइन होती थी , साडी पहनती थी . सर पे पल्लू रखती थी .और हाँ ब्लाउज भी ठीक वाला होता था .आज जैसा नहीं . अभी हाल की बात है .मैं अपनी बीवी के साथ कही जा रहा था . वहाँ Radisson Hotel के सामने एक नव यौवना दिखी .साड़ी पहने . भैया मैं तो हक्का बक्का रह गया .भला ऐसा भी कभी होता है कि लड़की ब्रा के ऊपर blouse पहनना ही भूल जाए . फिर मेरी बीवी ने मेरा ज्ञान वर्धन किया कि नहीं पतिदेव ये जिसे तुम ब्रा समझ रहे हो दरअसल वो ब्लाउज ही है .....नए ज़माने का . सो पुराने ज़माने में फिल्मों में हिरोइन कायदे से ब्लाउज वगैरह पहन के गाना गाती थी . फिल्में ज़्यादातर इमोसनल किस्म की होती थी .रोना धोना मचा रहता था .रो रो के लोगों के रुमाल भीग जाया करते थे .रोने धोने वाली फिल्म सुपर डुपर हिट होती थी . ऐसा नहीं था की मार धाड़ वाली फिल्म नहीं बनती थी . मार धाड़ में भी इमोसन का डोज़ भरपूर होता था . मसलन बच्चे माँ से बिछड़ जाते थे . हीरो कमबख्त सब कुछ करता , इश्क लड़ाता , गुंडों को पीटता और लगे हाथ माँ को भी याद कर के रो लेता था . पर आजकल अपनी फिल्म इंडस्ट्री में ये जो साले नए लौंडे आये हैं , इन्होने सब भ्रष्ट कर के रख दिया है . cultural भ्रष्टाचार मचा रखा है . इमोशनल अत्याचार का ज़माना नहीं रहा अब . अब realistic फिल्में बनती हैं . हकीक़त के नज़दीक . हीरो तो हीरो ,अब तो हेरोइन भी बहिन मतारी गरिया रही है . बेचारी माँ बहनों के देखने लायक तो रही ही नहीं फिल्में .
पर मुझे इस घोर घुप्प अँधेरे में उजाले की किरण नज़र आती है . पुरानी हेरोइन वाला समय जल्दी लौट के आएगा . सुगबुगाहाट शुरू हो गयी है .सब लोगों को तो नहीं दिखता होगा पर मुझ जैसे मूर्धन्य समाज शास्त्री तो बदलती हवा सूंघ ही लिया करते हैं . मैं इधर देख रहा हूँ की इमोसनल फिल्मों का दौर लौट रहा है .नयी scripts लिखी जा रही हैं .....बनी बनाई फिल्मों में नए scenes जोड़े जा रहे हैं . इमोसन का तडका लग रहा है . हाल ही में रिलीज़ हुई एक फिल्म के इस सीन पे गौर फरमाइए ......बेचारी विधवा माँ सफ़ेद साड़ी पहन , पल्लू सर पे लिए , जा रही है . उसका अनाथ , टूअर बेटा पल्लू पकड़ के साथ चल रहा है . वो उस लड़की के घर जा रहे हैं जिसकी हाल ही में gang rape के बाद ह्त्या हो गयी थी . वहाँ एक माँ ने दूसरी को गले लगा लिया . दोनों की आँख से आंसू बह चले . पीछे से रेणुका चौधरी running कमेन्ट्री सुनाने लगी ..........लाइव टेलीकास्ट हो ही रहा था .....फिर लड़की की माँ बोली , मैं आपका दुःख समझ सकती हूँ ......आपने भी इतना कुछ खोया है .......देश के लिए ......... बेक ग्राउंड म्यूजिक .....सारंगी ........ अब मेरे बच्चे आपके बच्चे हैं ........ लड़की के भाई अनाथ युवराज से लिपट गए ....रोने लगे .....रेणुका चौधरी ने रुमाल थमाया .....विधवा माँ ने दिवंगत लड़की की physiotherapy की किताबों को छुआ .....कपड़ों को सहलाया ......... इमोसन का तडका .......अंग अंग फड़का ...... फिल्म ब्लाक बस्टर ........
ऐसी ही एक फिल्म पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई थी , जयपुर में . सुनते हैं की उसमे रिलीज़ से एन पहले इमोसन एक्सपर्ट ने एक सीन जोड़ा था ......... हीरो को वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है .......वो माइक पे बोल रहा है ....... सुबक ...सुबक .....कल रात मेरी माँ .....रोने लगी बेचारी ....सुबक ....... और फिर हॉल में बैठे सारे रण बाँकुरे भी , मारे इमोसन के , सुबकने लगे ........ बरखा दत्त भी इमोसनल हो गयी , अनुराधा प्रसाद शुक्ला तो दहाड़ मार के रोने लगीं . फिर बेटा जब स्टेज से भारत रतन ले के उतरा तो माँ ने गले लगा लिया .......कट ...कट ...कट .
एक और फिल्म पे नज़र डालिए ........कुछ महीने पहले आज़मगढ़ में रिलीज़ हुई थी . उसमे लीड रोल में अपने सलमान भाई थे ........ नहीं नहीं ....सलमान खान नहीं .....नहीं यार सलमान रुश्दी भी नहीं .....उनको ले के तो हिन्दुस्तान में फिल्म बन ही नहीं सकती .....उसमे हीरो थे अपने सलमान फर्रुखा बादी ........वहाँ उन्होंने बेचारे कुछ victim किस्म के मुसलामानों की सभा में बताया की राजमाता तो दिल्ली में एनकाउंटर की फोटो देख के इमोसनल हो गयी थी .....मारे इमोसन के रोने लग गयी ....... सो आप लोग अब वोट दे दो . पर वहाँ कनफूजन मच गया . एनकाउंटर में एक पुलिस वाला भी मरा था . सो लोग बाग़ समझ ही न पाए की राज माता जो रोई थी वो terrorist की फोटो देख के रोई थी या पुलिस वाले की लाश देख के ....सो इस कनफूजन में फिल्म पिट गयी ......सुपर फ्लॉप ........
फिल्म इंडस्ट्री में घमासान मचा है ..........10 जनपथ productions से इमोसनल फिल्में धडा धड रिलीज़ हो रही हैं ....... उधर साले अनुराग कश्यप ने गाली गुप्ता मचा रखा है . माँ बहन से नीचे बात ही नहीं करता .......... अब देखना है की पब्लिक माँ बहन एक करती है या रुमाल गीले .......... अंत में मुझे Gangs Of Wasseypur फिल्म का वो डायलाग याद आता है .....जिसमे रामाधीर सिंह कहता है ...........सबके दिमाग में अपनी अपनी फिल्म चल रही है ............जब तक ये फिल्में बनती रहेंगी .....पब्लिक चूतिया बनती रहेगी ..........
पर मुझे इस घोर घुप्प अँधेरे में उजाले की किरण नज़र आती है . पुरानी हेरोइन वाला समय जल्दी लौट के आएगा . सुगबुगाहाट शुरू हो गयी है .सब लोगों को तो नहीं दिखता होगा पर मुझ जैसे मूर्धन्य समाज शास्त्री तो बदलती हवा सूंघ ही लिया करते हैं . मैं इधर देख रहा हूँ की इमोसनल फिल्मों का दौर लौट रहा है .नयी scripts लिखी जा रही हैं .....बनी बनाई फिल्मों में नए scenes जोड़े जा रहे हैं . इमोसन का तडका लग रहा है . हाल ही में रिलीज़ हुई एक फिल्म के इस सीन पे गौर फरमाइए ......बेचारी विधवा माँ सफ़ेद साड़ी पहन , पल्लू सर पे लिए , जा रही है . उसका अनाथ , टूअर बेटा पल्लू पकड़ के साथ चल रहा है . वो उस लड़की के घर जा रहे हैं जिसकी हाल ही में gang rape के बाद ह्त्या हो गयी थी . वहाँ एक माँ ने दूसरी को गले लगा लिया . दोनों की आँख से आंसू बह चले . पीछे से रेणुका चौधरी running कमेन्ट्री सुनाने लगी ..........लाइव टेलीकास्ट हो ही रहा था .....फिर लड़की की माँ बोली , मैं आपका दुःख समझ सकती हूँ ......आपने भी इतना कुछ खोया है .......देश के लिए ......... बेक ग्राउंड म्यूजिक .....सारंगी ........ अब मेरे बच्चे आपके बच्चे हैं ........ लड़की के भाई अनाथ युवराज से लिपट गए ....रोने लगे .....रेणुका चौधरी ने रुमाल थमाया .....विधवा माँ ने दिवंगत लड़की की physiotherapy की किताबों को छुआ .....कपड़ों को सहलाया ......... इमोसन का तडका .......अंग अंग फड़का ...... फिल्म ब्लाक बस्टर ........
ऐसी ही एक फिल्म पिछले हफ्ते रिलीज़ हुई थी , जयपुर में . सुनते हैं की उसमे रिलीज़ से एन पहले इमोसन एक्सपर्ट ने एक सीन जोड़ा था ......... हीरो को वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है .......वो माइक पे बोल रहा है ....... सुबक ...सुबक .....कल रात मेरी माँ .....रोने लगी बेचारी ....सुबक ....... और फिर हॉल में बैठे सारे रण बाँकुरे भी , मारे इमोसन के , सुबकने लगे ........ बरखा दत्त भी इमोसनल हो गयी , अनुराधा प्रसाद शुक्ला तो दहाड़ मार के रोने लगीं . फिर बेटा जब स्टेज से भारत रतन ले के उतरा तो माँ ने गले लगा लिया .......कट ...कट ...कट .
एक और फिल्म पे नज़र डालिए ........कुछ महीने पहले आज़मगढ़ में रिलीज़ हुई थी . उसमे लीड रोल में अपने सलमान भाई थे ........ नहीं नहीं ....सलमान खान नहीं .....नहीं यार सलमान रुश्दी भी नहीं .....उनको ले के तो हिन्दुस्तान में फिल्म बन ही नहीं सकती .....उसमे हीरो थे अपने सलमान फर्रुखा बादी ........वहाँ उन्होंने बेचारे कुछ victim किस्म के मुसलामानों की सभा में बताया की राजमाता तो दिल्ली में एनकाउंटर की फोटो देख के इमोसनल हो गयी थी .....मारे इमोसन के रोने लग गयी ....... सो आप लोग अब वोट दे दो . पर वहाँ कनफूजन मच गया . एनकाउंटर में एक पुलिस वाला भी मरा था . सो लोग बाग़ समझ ही न पाए की राज माता जो रोई थी वो terrorist की फोटो देख के रोई थी या पुलिस वाले की लाश देख के ....सो इस कनफूजन में फिल्म पिट गयी ......सुपर फ्लॉप ........
फिल्म इंडस्ट्री में घमासान मचा है ..........10 जनपथ productions से इमोसनल फिल्में धडा धड रिलीज़ हो रही हैं ....... उधर साले अनुराग कश्यप ने गाली गुप्ता मचा रखा है . माँ बहन से नीचे बात ही नहीं करता .......... अब देखना है की पब्लिक माँ बहन एक करती है या रुमाल गीले .......... अंत में मुझे Gangs Of Wasseypur फिल्म का वो डायलाग याद आता है .....जिसमे रामाधीर सिंह कहता है ...........सबके दिमाग में अपनी अपनी फिल्म चल रही है ............जब तक ये फिल्में बनती रहेंगी .....पब्लिक चूतिया बनती रहेगी ..........
सार्थक आलेख!
ReplyDeleteबहुत शानदार .
ReplyDeleteHahaha Well written...maza aa gaya :)
ReplyDeleteHahahaha
ReplyDeleteMantri ji maja aa raha hai