Friday, February 8, 2013

पहलवान और मुसलमान

                                    दोस्तों , पहलवान होने का भी बड़ा नफ़ा नुकसान है . ता उम्र पहलवानी की कराई है .हमसे बेहतर कौन जानता है . पहले पहलवानी की दस साल , फिर पहलवानी की ही नौकरी कर ली ....पहलवानी के ही कोच हो गए . फिर अपने लड़कों को भी पहलवान ही बना दिया .सो पहलवानी तो अपने रग रग में समाई हुई है . सो पहलवानी के नफे नुक्सान की बात यूँ उठी की हम लोगों को कोई सीरियसली नहीं लेता .शायद मैं गलत कह गया .हकीकत इसके उलट है , की हमको लोग ज़्यादा सीरियसली ले लेते हैं . उसका एक कारण ये है की हमें किसी को ये बताने की ज़रुरत नहीं पड़ती की हम पहलवान हैं .लोग शरीर देख के ही समझ जाते हैं .रही सही कसर हमारे टूटे हुए कान निकाल देते हैं . कान देख के लोग बाग़ समझ जाते हैं .  फिर खान पान , रहन सहन , उठाना बैठना , चाल ढाल , हसना बोलना ........पहलवानों की हर बात निराली है ....... अक्खड़ अलमस्त स्वभाव , बेफिक्र जीवन ......शारीरिक ताकत की वजह से उपजी एक स्वाभाविक आक्रामकता ....ऊपर से कुश्ती खेल की मूलभूत आवश्यकता है आक्रामक होना ........ इन सब के साथ पहलवानों के साथ कुछ पूर्वाग्रह भी जुड़े हुए है ...मसलन उन्हें अनपढ़ गवाँर मान लिया जाता है .......उनके बाहरी व्यक्तित्व से ही उनके बारे में पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं ........ हमारे हिंदी साहित्य में तो किसी भी गुंडे बदमाश लठैत को पहलवान दिखाने या कहने की परम्परा रही है ....हाल में रिलीज़ हुई फिल GANGS OF WASSEYPUR में सारे बदमाश पहलवान कहाए हैं ......सो ये पहलवानों  से जुड़े पूर्वाग्रह हैं जो सदियों से चले आ रहे हैं ...........ऊपर से कुछ अपनी इमेज खुद पहलवानों ने खराब की है ....अपने क्रिया कलापों से .......मैं इस से जुडी एक सच्ची story सुनाता हूँ ........
                   सन 1984 में मेरे पिता जी ने मुझे दिल्ली के एक अखाडे में पहलवानी करने के लिये भेज ..........उसी समय दिल्ली में 84 वाला दंगा हो गया ......... दंगे के तुरंत बाद कुछ ऐसी परिस्थितिया बनी की हमारे अखाड़े के कुछ लड़के दिल्ली में प्लॉट्स के कब्जे छुडाने लगे .....फिर कब्जा छुडाते छुडाते खुद कब्जे करने लगे .....फिर चुनाव हुए तो HKL BHAGAT जैसे नेताओं के साथ घूमने लगे ......... अजय चौटाला जैसे नेताओं से प्रश्रय पाने लगे और देखते ही देखते कुछ पहलवान दिल्ली और हरियाणा के बहुत बड़े बदमाश  बन गए .विष बेल जब बढ़ने लगती है तो बहुत तेजी से बढ़ती है .......... नौबत यहाँ तक आ गयी की बड़े बड़े गैंग बन गए .......... और पहलवान दिल्ली और हरियाणा में इतने बदनाम हो गए की शरीफ लोगों ने अपने बच्चों को पहलवानी करवान बंद कर दिया ....थानेदारों को निर्देश दिया गया की अपने इलाके के सभी अखाड़ों और पहलवानों की सूची बनाएं .......एक बार हरियाणा के एक गाँव में लोगों ने कुछ शरीफ पहलवानों को यूँ ही पीट दिया ......वो ग्रामीण शरीफ लड़कों को भी गुंडा ही मान बैठे थे ......5-7 साल तक यही माहौल रहा .....पहलवानों की इतनी बदनामी हो गयी थी  की इन्हें पुलिस आते जाते भी परेशान करती थी ........फिर उनमे से कई आपस में लड़ मर कर ख़तम हो गए .....कुछ का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया ......कई आज भी जी खा रहे हैं .......वो दस साल का समय भारतीय कुश्ती का सबसे बुरा समय रहा .....फिर धीरे धीरे माहौल सुधरा ....कुश्ती के समझदार coaches और उस्ताद खलीफाओं ने सख्ती की ...अपने लड़कों  में अनुशासन पे बल दिया ...... धीरे धीरे पहलवानों के शैक्षणिक स्तर  में भी सुधार हुआ ....... अनुशासन सुधरा तो कुश्ती के स्तर में भी सुधार हुआ ......... सुधरे माहौल में लड़के राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे पदक जीतने लगे .....और फिर देखते ही देखते सुशील और योगेश्वर दत्त जैसे नायकों ने कुश्ती और पहलवानों को वो मान सम्मान दिलाया की आज कुश्ती भारतीय समाज में सर्वाधिक लोकप्रिय खेल हैं और सुशील और योगेश्वर की  लोकप्रियता सचिन और धोनी के बराबर हो गयी है .......आज देश अपने पहलवानों पे गर्व करता है .....परन्तु ये भी एक कड़वा सच है की आज भी दिल्ली और हरियाणा का सबसे बड़ा माफिया दिचाऊ गाँव का कृष्ण पहलवान ही कहलाता है और GOW में गुंडे बदमाशों को पहलवान कहा गया है ..........
                                 आज देश में मुसलमानों की  दशा भी पहलवानों  जैसी हो गयी है ........जैसे पहलवान अलग पहचाना जाता है वैसे ही मुसलमान भी .......पहनावा , दाढी ,मूछ , तुर्की टोपी , भाषा , लहजा ...हर चीज़ से अलग पहचान बनती है ...........सदियों तक मुस्लिम आक्रान्ताओं , लुटेरों और शासकों के अत्याचार , कत्ले आम और लूट पाट  भारतीय हिन्दू समाज झेलता रहा है .धार्मिक असहिष्णुता मुस्लिम समाज की मूल समस्या रही है .......रही सही कसर सार्वभौमिक इस्लामिक आतंकवाद ने पूरी कर दी है  ..........सो पूरे विश्व में मुसलामानों की इमेज तो खराब है ही .......देखो भैया इमेज न एक दिन में खराब होती  है न सुधरती है ........ मुस्लिम आतंकवाद और असहिष्णुता और धार्मिक जड़ता ने आम मुसलमान की इमेज भी खराब की है और इसका खामियाजा उसे भुगतना ही पड़ता है . मुस्लिम समाज ने अपनी इमेज एक जाहिल समाज की बना ली है .......जो progressive नहीं है ......आज भी मदरसे में ही पढना चाहता है ....ज़रा ज़रा सी  बात पे सड़क पे आ के फसाद शुरू कर देता है .......अपनी औरतों पे अत्याचार करता है .......काश्मीर में लड़कियों के band पे ban  लगाने से मुसलामानों की क्या इमेज बनी ? ये माना की सभी मुसलमान ऐसे नहीं ....कुछ progressive भी हैं पर उनकी संख्या इतनी कम है और वो बेचारे इतने मूक हैं की उनकी आवाज़ सुनायी ही नहीं देती ........ शाहरूख खान की पीड़ा समझ आती है ..... उन्हें सिर्फ मुसलमान होने के नाते अमेरिका के हवाई अड्डों पे तलाशी और लम्बी पूछताछ से गुजरना पड़ता है .
                                       जैसे पहलवानी में सुशील और योगेश्वर जैसे नायक पैदा हुए और उन्होंने पूरे देश में पहलवानों की इमेज बदल दी वैसे ही मुसलामानों को पूरे विश्व में अपने अन्दर से नायक पैदा करने होंगे जिस से की उनकी खराब हुई इमेज ठीक हो सके .





























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