1990 में , आज से कोई तेइस साल पहले गाजीपुर जिले के तथा कथित बैकवर्ड क्षेत्र में हम लोगों ने एक स्कूल शुरू किया था . कहा जाता है की उन दिनों वो जिले का पहला प्राइवेट अंग्रेजी स्कूल था .ज़्यादातर छोटे बच्चे ही आये पहले साल . हमारे स्कूल में लड़के लड़कियों को अलग नहीं बैठाया जाता था .क्लास की सिटिग प्लान ऐसी थी की हर बेंच पे एक दो लड़के और एक दो लडकियां बैठती थीं . अब बच्चे , जो दुसरे स्कूलों से आये थे वो अपने साथ कुछ पूर्वाग्रह और संस्कार ले के आये थे .5 साल का बच्चा भी लडकी के साथ बैठने में असहज महसूस करता था . पर बच्चे बहुत जल्दी सीखते हैं .कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो गया .गाँव का नया नया स्कूल था .साल भर नए बच्चे आते रहते थे .और सबसे पहला पाठ जो बच्चा पढता था वो ये की लड़के लडकी में कोई फर्क नहीं होता .एक बार एक नया बच्चा आया .बगल में बैठी लडकी से वो बहुत ज़्यादा असहज था . मैंने उसे समझाया , बैठो बेटा , कुछ नहीं होगा .तुम्हारी बहन है न घर में ? वो भी तो लडकी है न ....उसे छूने पे कर्रेंट मारती है क्या ? इसे छुओ…… हाँ हाँ छुओ ....... देखो कर्रेंट नहीं लगा ना ? इस तरह सब बच्चे घुल मिल के व्यवहार करने लगे .साथ बैठ के पढ़ते , खेलते और खाते .हम लोग इस बात का विशेष ध्यान रखते थे की सब बच्चे एक साथ बैठ के, एक दुसरे का लंच बॉक्स शेयर करें . समय समय पे cover dish करते थे ........ उसमे बच्चे ग्रुप बना के अपने घरों से विशेष भोजन बना के लाते थे .फिर सब साथ बैठ के खाते .
समय के साथ बच्चे बड़े हुए .गाँव का हमारा छोटा सा स्कूल सिर्फ आठवीं तक था . उसके बाद ज़्यादातर बच्चे नवीं कक्षा में शहर के बड़े स्कूल में चले जाते थे. बीस पचीस बच्चों का ग्रुप इकट्ठे वहाँ जाता था . वहाँ भी वो ये संस्कार ले के जाते थे .अब उस बड़े स्कूल के भी तो अपने संस्कार थे ..........लड़कियों से अलग , कटे कटे रहना , कनखियों से ताकना और बात करने के लिए ललायित रहना . इन बीस पचीस बच्चों ने वहाँ जा के एक खलबली सी मचा दी . पर जल्दी ही वहाँ भी उन बच्चों ने सबको अपने रंग में रंग दिया . समय के साथ हमारा स्कूल भी दसवीं तक हो गया .पंद्रह साल तक हमने बच्चों के साथ काम किया .कभी eve teasing की कोई घटना नहीं हुई . कभी किसी लड़के ने किसी लडकी को प्रेम पत्र नहीं लिखा .कभी स्कूल में कोई समस्या नहीं आयी .
एक दिन, स्कूल में छुट्टी थी .स्टाफ आया हुआ था .डाक देख रहे थे हम लोग . तभी एक पत्र दिखा . दसवीं की एक लडकी के नाम था . मैंने देखते ही बता दिया ,प्रेम पत्र है . धर्म पत्नी बगल में बैठी थीं . फिर बिना उसे खोले ही दो लड़कों का नाम लिया ........इन दोनों में से किसी एक ने लिखा है . फिर पत्र खोला .प्रेम पत्र ही था .उन्ही में से एक लड़के ने लिखा था . पंद्रह सालों में पहली घटना थी .दरअसल उस साल वो दो लड़के नए आये थे . दूसरे स्कूलों से . उन्हें वो संस्कार नहीं मिले थे , जो हमारे बच्चों को बचपन से मिल रहे थे . हमारे बच्चों ने कभी एक दुसरे को alien के रूप में नहीं देखा या महसूस किया था . दिलो दिमाग में कोई वर्जना नहीं पलती थी . साथ बैठी लडकी दूसरे ग्रह की प्राणी नहीं लगती थी .सो कभी प्रेम पत्र लिखने की ज़रुरत ही महसूस नहीं हुई थी .
अब आज के आधुनिक समाज में तो संस्कार की बात करना भी outdated ,old fashioned हो गया है . TV पे बहस चल रही है . 5 साल की बच्चियों से दुराचार हो रहे हैं ........लोग सुझाव दे रहे हैं ....कानून बना दो , फांसी दो , गोली मार दो. संस्कार की कोई बात भी नहीं करता . चरित्र , संयम ,जैसे शब्द अब प्रयोग में नहीं हैं .दुनिया की हर समस्या का हल कानून नहीं है . संस्कार से हर समस्या का हल ढूंढा जा सकता है .
समय के साथ बच्चे बड़े हुए .गाँव का हमारा छोटा सा स्कूल सिर्फ आठवीं तक था . उसके बाद ज़्यादातर बच्चे नवीं कक्षा में शहर के बड़े स्कूल में चले जाते थे. बीस पचीस बच्चों का ग्रुप इकट्ठे वहाँ जाता था . वहाँ भी वो ये संस्कार ले के जाते थे .अब उस बड़े स्कूल के भी तो अपने संस्कार थे ..........लड़कियों से अलग , कटे कटे रहना , कनखियों से ताकना और बात करने के लिए ललायित रहना . इन बीस पचीस बच्चों ने वहाँ जा के एक खलबली सी मचा दी . पर जल्दी ही वहाँ भी उन बच्चों ने सबको अपने रंग में रंग दिया . समय के साथ हमारा स्कूल भी दसवीं तक हो गया .पंद्रह साल तक हमने बच्चों के साथ काम किया .कभी eve teasing की कोई घटना नहीं हुई . कभी किसी लड़के ने किसी लडकी को प्रेम पत्र नहीं लिखा .कभी स्कूल में कोई समस्या नहीं आयी .
एक दिन, स्कूल में छुट्टी थी .स्टाफ आया हुआ था .डाक देख रहे थे हम लोग . तभी एक पत्र दिखा . दसवीं की एक लडकी के नाम था . मैंने देखते ही बता दिया ,प्रेम पत्र है . धर्म पत्नी बगल में बैठी थीं . फिर बिना उसे खोले ही दो लड़कों का नाम लिया ........इन दोनों में से किसी एक ने लिखा है . फिर पत्र खोला .प्रेम पत्र ही था .उन्ही में से एक लड़के ने लिखा था . पंद्रह सालों में पहली घटना थी .दरअसल उस साल वो दो लड़के नए आये थे . दूसरे स्कूलों से . उन्हें वो संस्कार नहीं मिले थे , जो हमारे बच्चों को बचपन से मिल रहे थे . हमारे बच्चों ने कभी एक दुसरे को alien के रूप में नहीं देखा या महसूस किया था . दिलो दिमाग में कोई वर्जना नहीं पलती थी . साथ बैठी लडकी दूसरे ग्रह की प्राणी नहीं लगती थी .सो कभी प्रेम पत्र लिखने की ज़रुरत ही महसूस नहीं हुई थी .
अब आज के आधुनिक समाज में तो संस्कार की बात करना भी outdated ,old fashioned हो गया है . TV पे बहस चल रही है . 5 साल की बच्चियों से दुराचार हो रहे हैं ........लोग सुझाव दे रहे हैं ....कानून बना दो , फांसी दो , गोली मार दो. संस्कार की कोई बात भी नहीं करता . चरित्र , संयम ,जैसे शब्द अब प्रयोग में नहीं हैं .दुनिया की हर समस्या का हल कानून नहीं है . संस्कार से हर समस्या का हल ढूंढा जा सकता है .
आपका दिया ऐसा संस्कार वाकई बेहतर है. दिक्कत ये हो गई है कि संस्कार का मतलब लोग सिर्फ अपने धार्मिक किताबों में लिखी बातों से लगा लेते हैं.
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