Wednesday, June 12, 2013

अय्यप्पन और सुधा की प्रेम कथा

                               एक बार मशहूर हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने एक चुटकुला नुमा कविता पढी थी एक कवि सम्मलेन में . एक जाट की जाटनी बीमार हो गयी .डॉक्टर बोल्या ....रै जाट , तेरी जाटनी घणी बीमार सै ....तीन हज़ार रुप्यां मैं बिलकुल ठीक हो जागी ........जाट बोल्या , रै दाग्दर , रहण दे , क्यों  मखौल करै सै , पंद्रह सौ रुप्यां में नयी जाटनी ना आ जावेगी ......... खैर ये तो हुई चुटकुले की बात ........ यूँ पति पत्नी के बीच नोक झोंक , गिले शिकवे , प्यार मोहब्बत की दास्तानें सुनते ही रहते हैं ........पति पत्नी के बीच अथाह मोहब्बत का एक किस्सा या यूँ कहें चुटकुला मैंने यूँ भी सुना है की शाहजहाँ ने अपनी बेगम के इंतहाँ प्यार में उसकी याद में मकबरा बनवा दिया जिसे लोग देखने और सराहने पूरी दुनिया से खिचे चले आते हैं . यूँ उसके बारे में विद्रोही शायर साहिर लुधियानवी ने लिख दिया कि  इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल , हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक ....मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे .........
                              कल अखबारों में अय्यप्पन के बारे में पढ़ा तो आंख की कोर गीली हो गयी ....... निश्छल प्रेम की जो मिसाल उस आदमी ने कायम कर दी उसे दुनिया सदियों तक याद करेगी .......अपनी बीमार गर्भवती बीवी सुधा को घनघोर बारिश में जंगल के ऊबड़ खाबड़ रास्तों पे , पीठ पे लाद के वो आदमी अकेला चालीस किलोमीटर पैदल ले आया ....... जहां उसे एक जीप मिल गयी ....और सुधा को अस्पताल तक पहुचाया जा सका ....खबर है की सुधा तो बच  गयी पर बच्चे को नहीं बचाया जा सका ........
                              मेरी बुढिया बीवी , उनकी बहन और  मेरी बेटी पिछले साल मनाली स्थित Atal Bihari Vaajpeyee Institute of mountaineering में basic mountaineering course करने गए थे . वहाँ वो लोग उन्हें रोजाना 6 से 8 घंटे , पीठ पे बीस किलो का बैग लाद के ट्रैकिंग करवाते थे .दस हज़ार फुट की ऊँचाई पे , जहां यूँ ही खड़े खड़े ही सांस फूलने लगती हो , ऊबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्तों पे पंद्रह किलोमीटर चलना , वो भी पीठ पे बैग लादे , बड़ा हे दुष्कर कार्य होता है .......वहाँ trainers एक ही बात सिखाते थे .......थकावट एक मानसिक अवस्था है ....इसका शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं होता ....शरीर तभी थकता है जब मन थक जाता है .....शरीर तभी हारता है जब मन हार जाता है ........कोर्स में कुल सौ से ज़्यादा लोग थे .....तकरीबन सभी जवान थे ........सभी इन्हें मम्मी जी कह के ही बुलाते थे ....एक तरह से कोर्स में इनका नाम ही मम्मी जी पड़ गया ........जब भी कोई नौजवान थकने लगता , हार मानने लगता , तो ट्रेनर्स उसे यूँ उत्साहित करते की देखो अगर मम्मी जी कर सकती हैं तो तुम क्यों नहीं .........एक महीने में कई बार ऐसे मौके आये जब मेरी पत्नी ने हार मान ली .....तब trainers ने इन्हें यूँ समझाया की आपसे ही प्रेरणा पा कर तो ये बच्चे लगे हुए हैं .......अगर आप ही बैठ गयीं तो इनका क्या होगा .....और वो सब एक दूसरे से प्रेरणा लेते , एक दूसरे का हाथ बटाते , उत्साह वर्धन करते पहाड़ चढ़ गए .........बहुत दुष्कर कार्य करने के लिए .......... थके टूटे शरीर को चलाते रहने के लियी बहुत तीव्र मानसिक शक्ति और बहुत तीव्र मानसिक संवेग की आवश्यकता होती है .....
                                         उस रात अपनी बीमार मरणासन्न गर्भवती पत्नी को पीठ पे लादे , मूसलाधार बारिश में बिना थके लगातार चलते अय्यप्पन को कौन हौसला दे रहा था ......कौन सा मानसिक संवेग उसे चलाये जा रहा था ......अपनी पत्नी सुधा के प्रति अगाध , अथाह प्रेम ही वो ताकत थी जो उस रात उस मरियल से आदिवासी को सारी रात चलाती रही ..........निश्छल प्रेम की ये गाथा आज के उन नौजवानों के लिए प्रेरणा बन सकती है जो रिश्तों की अहमियत नहीं समझ पाते ...........


अय्यप्पन अपनी पत्नी सुधा के साथ अस्पताल में ............










2 comments:

  1. क्या कोई खाँग्रेसी जवाब देगा......????
    ये किस भारत का निर्माण है......???

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