Thursday, September 22, 2011

myself राजिंदर परसाद .....टिर्पुल MA

पुरानी बात है ...उन दिनों हम अपने गाँव में स्कूल चलाये करते थे ......सो एक दिन एक श्रीमान जी मिलने आये .......जवान लड़का सा था .......यही कोई 27  -28  साल का .......
सर माइसेल्फ़ राजेंदर परसाद ....टिर्पुल MA ....... 
 हाँ कहिये राजेंद्र जी ......कैसे आना हुआ 
सर आपके स्कूल में पढ़ाना चाहता हूँ ........
अच्छा ....क्या सब्जेक्ट पढ़ाना चाहेंगे  ......  
सर हम टिर्पुल MA  किया हूँ .... इंग्लिश ,इकोनोमिक्स और राजनीति शास्त्र से .....कुछ भी पढ़ा सकता हूँ....
मैंने अपनी दाई को आवाज़ लगाई .....माधुरी ज़रा second  ,  third  ,  fourth  , क्लास की इंग्लिश  की बुक ले कर आना ....माधुरी ले आयी ....भाई राजेंद्र जी बहुत देर तक उन किताबों  को पलटते रहे   ......फिर हिम्मत  जुटा  कर बोले  ....सर तैयारी  कर के  सेकंड को पढ़ा लूँगा .........मैंने उन्हें शाबाशी दी ....उत्साहवर्धन किया .....और तैयारी कर के आने के लिए बोला ........फिर कई साल उनके दर्शन नहीं हुए ......एक दिन हम दोनों मियां बीवी कहीं जा रहे थे ...तो राजेंद्र प्रसाद जी मिल गए ......उन्होंने हमें आवाज़ दे के रोका ....बड़ी गर्मजोशी से मिले ....मैंने उनसे कहा ....यार आप आये ही नहीं उसके बाद ...सो उन्होंने बड़े गर्व से बताया की उनका तो appointment एक दूसरे बड़े स्कूल में हो गया था ........उस स्कूल की तारीफ़ ये थी की हमारे इलाके के एक यादव जी किसी ज़माने में अमेरिका जा के किसी university  में प्रोफेसर हो गए थे  ...सो जब वो मरे तो कुछ लाख dollar अपनी वसीयत में यूँ छोड़ गए की मेरे गाँव में ,मेरी पुश्तैनी ज़मीन पर मेरा भतीजा स्कूल खोलेगा ......सो भतीजे ने आनन् फानन में करोड़ों रु लगा कर बिल्डिंग बनायी और CBSE का affiliation  भी ले लिया ......सो उसी स्कूल में राजिंदर परसाद जी इंग्लिश के teacher  हो गए थे और senior  classes  को इंग्लिश पढ़ाते थे ...हम दोनों ने उनको शुभकामनाएं दी .....और उस स्कूल के बच्चों के लिए मन ही मन दुआ की और अपने रास्ते हो लिए .......
                                पिछले दिनों फिर गाँव जाना हुआ तो इत्तेफाकन राजिंदर परसाद जी फिर मिल गए ....इस बार भी तपाक से मिले ....उसी पुरानी गर्म जोशी से .......हाल चाल हुआ ......बताने लगे की आजकल टिशनी पढ़ाते है .......पर आप तो पहले तुलसी कॉन्वेंट में पढ़ाते थे न ?????? अरे सर क्या बताएं ...स्कूलवा तो बंद हो गया ....वो काहें भैया  ?????? अरे सब लड्कवे ही फेल हो जाते थे .....खैर साहब हमने दिल से अफ़सोस जाहिर किया पूरे घटनाक्रम पर ....राजेंद्र जी को शुभकामनाएं दी और आगे  बढ़ गए ........
                                 खैर ये तो पुरानी बात हो गयी ...आजकल यहाँ पंजाब में रहते हैं ........धर्म पत्नी एक अच्छे खासे स्कूल की प्रिंसिपल हैं ....... एक education consultant  होने के नाते मेरा भी आना जाना बड़े बड़े स्कूल कालेजों में लगा रहता है .......य्यय्य्य्ये  बड़े बड़े संस्थान हैं ......करोड़ों की पूँजी लगा रखी है ......5 star होटलों  जैसी बिल्डिंग हैं .......साज सज्जा है ......पूरा ताम झाम है ......मैडम जी लोग फर्राटे से अंग्रेजी बोलती हैं .........बच्चे टाई लगा के स्कूल आते हैं .........ऊपर से सब कुछ बहुत अच्छा लगता है ........पर जब मैनेजमेंट से बात होती है तो बेचारे रो देते हैं ....अरे साहब क्या बताएं ......स्टाफ की बड़ी दिक्कत है .....क्यों क्या हुआ ?????? अजी अच्छा स्टाफ ही नहीं मिलता ........किसी तरह काम चला रहे हैं .....ये तमाम लोग ....अरे किसी काम के नहीं .......ज़्यादातर लोग मजबूरी में टीचर बनते हैं ..........पढने पढ़ाने में कोई रूचि नहीं होती उनकी ..........मैंने पूछा ,  देते क्या हो ?????? यही 5000  ,7000  या दस हज़ार .........आप ये चाहते हैं की 5 -10  हज़ार में एकदम टॉप क्लास आदमी आपके यहाँ पढ़ायेगा  ?????? अजी साहब जिसे तीस हज़ार दे रहे हैं वो कौन सा आसमान से तारे तोड़ के ला देता है ........
                                                जब स्टाफ से बात करो तो कुछ और ही स्टोरी सुनने को मिलती है ....अजी ये लोग लोग खून चूस लेते हैं दस हज़ार दे के .......हमेशा टेंशन बना के रखते हैं माहौल में .......एकदम slave  जैसा महसूस करती हूँ मैं यहाँ पर .......मुझे तो लगता है मेरी तो जिंदगी ही बीत जायेगी कापियां चेक करते ...........अब ऐसे माहौल में आप उस बेचारी teacher  की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने के अलावा कर ही क्या सकते हैं ..........
                                               पिछले दिनों यहाँ पतंजलि योगपीठ में एक नया लड़का आ गया और उसे मेरा रूम मेट बना दिया गया ....वो पूना के एक बहुत बड़े , नामी गिरामी प्राइवेट कॉलेज से MBA की पढ़ाई पढ़ के आया है ......... नई पीढ़ी  के इन पढ़े लिखे technocrats से काफी कुछ सीखने  को मिलता है  , सो मैं उस से घंटों बतियाता रहता था ..........और वो भी मुझे ज्ञान देता रहता  था .....एक दिन वो फट पड़ा .........17  लाख लगा के MBA किया है .........आज मुझे कोई 1700  की नौकरी नहीं दे रहा है .....जबकि मेरा बाप समझता है की मेरे बेटे का तो annual  package  17 लाख का होगा ......इस पूरे किस्से में मुझे फिर राजेंद्र प्रसाद टिर्पुल MA  की याद आ जाती है ....बनारस की काशी विद्या पीठ university  से तीन बार MA करने में भी उसके 1700  रु खर्च न हुए होंगे ........और वो कम से कम अपने गाँव में  tutions  तो पढ़ा लेता है .....ये बेचारा तो MBA का ठप्पा लगवा के वो भी नहीं कर पा रहा ......
बाकी  शिक्षा की दूकान ....या यूँ कहें शो रूम ,  ठीक ठाक चल रहा है











2 comments:

  1. इनसे तो अपन ही बढिया रहे कि इंजीनियर बन गये। हालांकि डेढ साल बाद मनपसन्द नौकरी मिली लेकिन डेढ सालों में भी नौकरियों की कमी नहीं रही। 18 महीनों में 9 कम्पनियां बदलीं। भगवान भला करे दुनिया का।

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  2. maine ignou se MCA kiya 50 hajar me, 10 mahine me panch company badal chuka hu. samajh me nahi aata 17 lakh me MBA karane vale kya padhate honge. aaj padhne ki sari cheeje net par hai.

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